शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

खिजाँ का मौसम

टूटे हुए दिल से भला क्या पाओगे
खिजाँ का मौसम किस तरह निभाओगे

इक कदम भी भारी है बहुत
जंजीरों में उलझ , न चल पाओगे

रुका है वक्त क्या किसी के लिए
सैलाब मगर ठहरा हुआ ही पाओगे

ठण्डी साँसें हैं पुरवाई नहीं
सहराँ की हवाओं में झुलस जाओगे

जीती-जागती बस्ती में मुर्दा है कोई
मरघट में हलचल का पता पाओगे

हमने चरागे-दिल से कहा
सहर तलक जलने की सजा पाओगे

परछाइयों से डरते हो
शबे-गम किस तरह निभाओगे

कतरा-कतरा ग़मों को पीना है
हलक से ज़िन्दगी कैसे उतार पाओगे

17 टिप्‍पणियां:

  1. badnaamee se darte ho
    mohabbat kaise nibhaaoge

    umdaa bahut umdaa

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  2. जीती-जागती बस्ती में मुर्दा है कोई
    मरघट में हलचल का पता पाओगे

    bahut sundar abhivyakti,

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  3. रुका है वक्त क्या किसी के लिए
    सैलाब मगर ठहरा हुआ ही पाओगे

    Bahut Sunder...

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी लगाई है!
    सूचनार्थ!

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  5. कतरा-कतरा ग़मों को पीना है
    हलक से ज़िन्दगी कैसे उतार पाओगे

    शारदा जी आपकी प्रस्तुति कमाल की है.
    सार्थक गहन प्रश्नात्मक.

    अबकी बार मेरे ब्लॉग पर जरूर आईयेगा जी.

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  6. ठण्डी साँसें हैं पुरवाई नहीं
    सहराँ की हवाओं में झुलस जाओगे

    जीती-जागती बस्ती में मुर्दा है कोई
    मरघट में हलचल का पता पाओगे

    बहुत सुंदर गज़ल. बढ़िया प्रस्तुति.

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  7. इक कदम भी भारी है बहुत
    जंजीरों में उलझ , न चल पाओगे ...

    और फिर भी इंसान उलझा रहता है जंजीरों में रोज मर्रा की ... छोटी छोटी बातों में ...

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  8. कतरा-कतरा ग़मों को पीना है
    हलक से ज़िन्दगी कैसे उतार पाओगे

    घूँट-घूँट पी कर ही ज़िंदगी बीत जाती है,सुंदर रचना।

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  9. शारदा जी हमेशा की तरह बेजोड़ रचना...बधाई बधाई बधाई

    नीरज

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  10. ठण्डी साँसें हैं पुरवाई नहीं
    सहराँ की हवाओं में झुलस जाओगे
    बहुत खूब .

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  11. परछाइयों से डरते हो
    शबे-गम किस तरह निभाओगे ......

    वाह बहुत बढिया ...सच लिए हुए खुद में

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  12. बहुत खूब....
    आज से आपकी फोलोवर हूँ..
    शुभकामनाएँ.

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  13. बहुत ही सुंदर रचना है ,पहली बार आप के ब्लॉग पर आना हुआ,कई रचनाएँ पढ़ी ,बहुत ही उम्दा लिखते है आप....उम्मीद है फिर जरुर आना होगा इस ब्लॉग पर....

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं