न तुम हमारे , न घर हमारा
हम ही नादान हैं दिल लगाए हुए
मजबूर हैं आदत से परिन्दे
तिनकों में हैं खुद को उलझाए हुए
अपनी दुनिया तो अँधेरी है
अपने क़दमों का दम भी भुलाए हुए
हाथ जो झटका तुमने
हैं आसमान तक छिटकाए हुए
हार गईं झूठी तसल्लियाँ
चला रहीं थीं जो भरमाये हुए
ये तो ज़िन्दगी की सोहबत है
सहराँ में है जो फूल खिलाये हुए
चले भी आओ के रुत बदली है
वफ़ा की बात भी है फलक पे छाये हुए
तिनकों में हैं खुद को उलझाए हुए
अपनी दुनिया तो अँधेरी है
अपने क़दमों का दम भी भुलाए हुए
हाथ जो झटका तुमने
हैं आसमान तक छिटकाए हुए
हार गईं झूठी तसल्लियाँ
चला रहीं थीं जो भरमाये हुए
ये तो ज़िन्दगी की सोहबत है
सहराँ में है जो फूल खिलाये हुए
चले भी आओ के रुत बदली है
वफ़ा की बात भी है फलक पे छाये हुए
बहुत सुन्दर शारदा जी,
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
बहुत सुन्दर शारदा जी,
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
क्या कहने!
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
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बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत ही बढ़िया...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर :-)
मजबूर हैं आदत से परिन्दे
जवाब देंहटाएंतिनकों में हैं खुद को उलझाए हुए
Parinde to phirbhee tinke jod hee lete hain....ghonsla banaa hee lete hain....chahe toofan me ukhad jaye.....ye to insaan hain jo bikhar jate hain!
Behad khoobsoorat rachana!
ये तो ज़िन्दगी की सोहबत है
जवाब देंहटाएंसहराँ में है जो फूल खिलाये हुए
Bahut Sunder
bahut sunder rachna....
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna....
जवाब देंहटाएंमजबूर हैं आदत से परिन्दे
जवाब देंहटाएंतिनकों में हैं खुद को उलझाए हुए
वाह बेहतरीन ग़ज़ल बहुत सुन्दर खास कर इस शे'र के कुछ ज्यादा ही दाद कुबूल कीजिये
bahut hi umda rachana waah!!
जवाब देंहटाएंमजबूर हैं आदत से परिन्दे
जवाब देंहटाएंतिनकों में हैं खुद को उलझाए हुए-----वाह क्या कहने बहुत शानदार अभिव्यक्ति
हार गईं झूठी तसल्लियाँ
जवाब देंहटाएंचला रहीं थीं जो भरमाये हुए
ये तो ज़िन्दगी की सोहबत है
सहराँ में है जो फूल खिलाये हुए
मन कि भावनाओं को उकेरतीसी खूबसूरत रचना
बहुत प्यारी रचना, बेहद कोमल भावों को समेटे हुये है
जवाब देंहटाएंउम्दा शेर... बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंWonderful writing coming from the heart. All the best in your endevour. God bless
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंदिनांक 06/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
“दर्द की तुकबंदी...हलचल का रविवार विशेषांक....रचनाकार...रविकर जी”
aye haye ...maza aa gya ...waah
जवाब देंहटाएंrecent poem : मायने बदल गऐ
ये तो ज़िन्दगी की सोहबत है
जवाब देंहटाएंसहराँ में है जो फूल खिलाये हुए............बहुत ही उम्दा शेर