सोमवार, 12 अक्टूबर 2020

इक धूप सी जमी है


इक धूप सी जमी है निगाहों के आस-पास 
गर ये आप हैं तो आपके कुर्बान जाइये 

आ ही गये हैं हम भी सितारों के देश में 
पलकों पे रखे ख़्वाब हैं,इनमें ही आप जरा आन मुस्कराइये 

शुरुआत थी इतनी हँसीं ,अन्जाम की खबर किसे 
दिलवालों की दुनिया में फ़ना होने का हुनर जान जाइये 

यूँ तो अक्सर सताते ही रहते हैं हमें आप 
दिल फिर भी चाहता है कि आँखों के आगे आप रहें ,मान जाइये 

अहमियत कितनी है किसी की ,ये कौन जानता 
ये फासलों की तालीम है ,जिगर के पास कौन है ,पहचान जाइये 

8 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

वाहः
सुन्दर रचना

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय दी।
सादर

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-10-2020) को "न मैं चुप हूँ न गाता हूँ" (चर्चा अंक-3856) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

"मीना भारद्वाज"

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

शारदा अरोरा ने कहा…

Sabhi ko bahut bahut dhanyvad

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन।