इक धूप सी जमी है निगाहों के आस-पास
गर ये आप हैं तो आपके कुर्बान जाइये
आ ही गये हैं हम भी सितारों के देश में
पलकों पे रखे ख़्वाब हैं,इनमें ही आप जरा आन मुस्कराइये
शुरुआत थी इतनी हँसीं ,अन्जाम की खबर किसे
दिलवालों की दुनिया में फ़ना होने का हुनर जान जाइये
यूँ तो अक्सर सताते ही रहते हैं हमें आप
दिल फिर भी चाहता है कि आँखों के आगे आप रहें ,मान जाइये
अहमियत कितनी है किसी की ,ये कौन जानता
ये फासलों की तालीम है ,जिगर के पास कौन है ,पहचान जाइये
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाहः
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय दी।
जवाब देंहटाएंसादर
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-10-2020) को "न मैं चुप हूँ न गाता हूँ" (चर्चा अंक-3856) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
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"मीना भारद्वाज"
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंSabhi ko bahut bahut dhanyvad
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
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