बुधवार, 18 नवंबर 2020

जिन्दा रखिये

 सो न जाये इंसानियत कहीं

सीने में ज़मीर को जिन्दा रखिये


कितना भी कटु हो इतिहास

अपने आज को जिन्दा रखिये 


वक्त के साथ बदल जाता है बहुत कुछ

मगर यादों में उल्लास को जिन्दा रखिये


मर न जाये कहीं बेवक्त अहसास 

अपनी आवाज को जिन्दा रखिये


खो न जाये वो नफासत ,नजाकत 

सँगीत भरे माहौल को जिन्दा रखिये 


होती है जिन्दगी किन्हीं दुआओं का असर

अपनों की महक को जिन्दा रखिये


खो गया है बचपन तो कहीं बहुत पीछे

सीने में मगर नन्हें बच्चे को जिन्दा रखिये

1 टिप्पणी:

मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं