सोमवार, 26 जनवरी 2009

मुझे मात दे ऐ ज़िन्दगी

मुझे मात दे ऐ ज़िन्दगी , तेरी शह पे मैं मचल सकूं
मुझे मूक राहों के बदले में, वो मुकाम दे जो बदल सकूँ

यूँ तो चाहतों का सफर भी है और राहतों का असर भी है
कोई तो हो ऐसी डगर जो ,मैं वक्त बन पकड़ सकूँ

मेरी जुस्तजू का गुजर भी है और आशना का बसर भी है
मुट्ठी में कोई बयार दे ,जो ख्याल बुन जकड़ सकूँ

यूँ तो सीढियों का चलन भी है और पीढ़ियों का गगन भी है
सहराँ में कोई खुमार दे ,कि मैं फूल बन अकड़ सकूँ


कृप्या सुनने के लिये लिंक पर क्लिक करे ( स्तुति की आवाज़ में )
http://www.box.net/shared/13tkcqxzon

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर. अभी सुन नहीं पाये हैं. जल्द ही सुनते हैं.

आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

रंजना ने कहा…

Waah ! Bhaavpoorn aur prawaahpoorn atisundar geet.Aaabhaar aapka,is sundar geet ki sundar prastuti ke liye.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

शारदा जी, अच्छी रचना के जिये साधुवाद स्वीकारें...

KK Yadav ने कहा…

Lajwab Prastuti...!!

KK Yadav ने कहा…

गाँधी जी की पुण्य-तिथि पर मेरी कविता "हे राम" का "शब्द सृजन की ओर" पर अवलोकन करें !आपके दो शब्द मुझे शक्ति देंगे !!!

शिरीष कुमार मौर्य ने कहा…

शारदा जी ब्लागजगत मैं स्वागत! मुझे अफसोस है कि अपनी कुछ उलझनों में रहकर मैं आपकी मदद को न आ सका पर ये ब्लाग देखकर बहुत अच्छा लगा। अपने हमशहर को देखना तो वैसे भी अच्छा होता है, वो भी तब जब आप कहीं बाहर हों - मैं पिछले एक महीने से मध्य प्रदेश में हूं!एक बार फिर बधाई!

इस ब्लाग के लेआउट में थोड़ा काम कीजिए! शीर्षक ठीक से दिख नहीं रहा!

सादर
शिरीष नैनीताल

Arpita Papneja Shoker ने कहा…

bhot acha likha he apne