रविवार, 16 अगस्त 2009

जिसकी जितनी झोली

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता और धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसकी जितनी झोली थी उतनी ही सौगात मिली

लाख लगे हों दिल पर पहरे , अपनी ही औकात मिली
भर तो लेते दामन अपना , बात नहीं बेबात मिली

चाँद भी उतरा तारे भी उतरे , फ़िर भी न उजली रात मिली
जहन सजाये बैठे हैं हम , यादों की बारात मिली

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता और धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसकी जितनी झोली थी उतनी ही सौगात मिली


6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

umda rachna...........

agar ise geet ke roop me aur badhaaden toh zyada behtar hoga....
acchi anubhooti karane k liye dhnyavaad !

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता और धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसकी जितनी झोली थी उतनी ही सौगात मिली

bahut umda rachna. badhai.

अर्चना तिवारी ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना..

pooja ने कहा…

bahut sunder rachna haa....

Mithilesh dubey ने कहा…

bahut sunder rachna hai, badhai swkikare.

दिवाकर मणि ने कहा…

वाह, इन पंक्तियों में तो आपने सार प्रस्तुत कर दिया है-
"टुकड़े-टुकड़े दिन बीता और धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसकी जितनी झोली थी उतनी ही सौगात मिली".

मेरे ब्लॉग पर आने हेतु आपका धन्यवाद. हां, राम की ही सलाह पर मैंने भी ये विजेट लगाया है, लेकिन मैंने ब्लॉगवाणी पर जाकर नहीं देखा. अस्तु, विजेट लगाने हेतु कोई अन्य चरण की आवश्यकता नहीं है.