शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

कहने को हम हैं अपनी मर्ज़ी के मालिक

अपनी दुनिया भी कहाँ अपनी है
कहने को हम हैं अपनी मर्ज़ी के मालिक
चप्पे चप्पे पे राज़ किसका है


अपनी धड़कन भी कहाँ अपनी है
अपनी चाबी तो खुद हमने
अपनी दुनिया के हाथों में थमाई है


कब ज़माने के हिलाये से हिले हम
दिल के साज़ पे सुर-ताल
अपनी दुनिया की ही तो कारस्तानी है


ज़माने से ज़ुदा जो आबाद हुई
उसके सिवा अब चलने को
दुनिया की कोई राह कहाँ अपनी है


क्या बताएँ , हम हैं उसी दुनिया के मालिक
चन्द लम्हों को छोड़ हमको
नाज़ जिसका है |

कहने को हम हैं अपनी मर्ज़ी के मालिक

4 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा ......... अपनी मर्ज़ी से कोई कुछ नही कर पाता .......... दुनियादारी के जाल में फँस कर सब कुछ दूसरों के अनुसार ही करना पढ़ता है ..............

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  2. शारदा जी आदाब
    अपनी दुनिया भी कहाँ अपनी है...
    ...कहने को हम हैं अपनी मर्ज़ी के मालिक..!!
    शुरूआत से लेकर आखिर तक,
    इंसान की बेबसी को
    चंद लाइनों में समेटकर बख़ूबी पेश किया है आपने

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  3. अपनी दुनिया भी कहाँ अपनी है
    कहने को हम हैं अपनी मर्ज़ी के मालिक
    चप्पे चप्पे पे राज़ किसका है
    अपनी धड़कन भी कहाँ अपनी है
    अपनी चाबी तो खुद हमने
    अपनी दुनिया के हाथों में थमाई है
    Kitnee sachhayee hai in panktiyon me!

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं