गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

कोई अब तक खड़ा है

एक पाती बहारों के नाम ,

तुम्हारा इन्तिज़ार अब तक हरा है
सूखी नहीं हैं टहनियाँ कोई अब तक खड़ा है


मौसम कई आए गए किसको पता
कोई अब तक तन्हा बड़ा है


मत बताना नहीं आयेगी कोई चिट्ठी
इतनी सी खबर में भी तूफ़ान बड़ा है


लम्हा लम्हा रौशन हैं बहारें देखो
ज़िन्दगी ये भी तेरा अहसान बड़ा है


चन्दा भी रातों को जगा है
रोज घटता बढ़ता अरमान बड़ा है


कोपलें खिल न सकीं मौसम की मेहरबानी से
धरती के सीने में अहसास बड़ा है


वफ़ा ज़फ़ा एक ही सिक्के के दो पहलू
सगा नहीं है कोई फिर भी विष्वास बड़ा है


टंगा हुआ है कोई आसमाँ के पहलू में
वजह कोई न थी तो क्यूँ किस्मत से लड़ा है

19 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

मत बताना नहीं आयेगी कोई चिट्ठी

इतनी सी खबर में भी तूफ़ान बड़ा है

वाह शारदा जी…………गज़ब की रचना है…………सच से आँख चुराने को जी चाहता है…………बहारों को घर बुलाने को जी चाहता है…………कितनी खूबसूरती से सब सच कह दिया।

kshama ने कहा…

Sach!Ummeed,jhootee hee sahee,uska daaman pakade rahne ko jee chahta hai!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

मत बताना नहीं आयेगी कोई चिट्ठी


इतनी सी खबर में भी तूफ़ान बड़ा है
बेहतरीन अभिव्यक्ति !
आभार!

Sunil Kumar ने कहा…

मत बताना नहीं आयेगी कोई चिट्ठी
इतनी सी खबर में भी तूफ़ान बड़ा है
शारदा जी खूबसूरती से सच कह दिया। बेहतरीन अभिव्यक्ति !
आभार!

Sunil Kumar ने कहा…

शारदा जी एक सुझाव है ( मानना आपके ऊपर है ) टंकण के समय एक बार प्रीव्यू देख लें | ऐसे रचना की उत्कृष्टता कम हो जाती है | क्षमा चाहूँगा |
तुम्हारा इन्तिज़ार अब तक हरा है
सूखी नहीं हैं टहनियाँ कोई अब तक खड़ा है|

मौसम कई आए गए किसको पता
कोई अब तक तन्हा बड़ा है |

मत बताना नहीं आयेगी कोई चिट्ठी
इतनी सी खबर में भी तूफ़ान बड़ा है|

लम्हा लम्हा रौशन हैं बहारें देखो
ज़िन्दगी ये भी तेरा अहसान बड़ा है|

चन्दा भी रातों को जगा है
रोज घटता बढ़ता अरमान बड़ा है|

कोपलें खिल न सकीं मौसम की मेहरबानी से
धरती के सीने में अहसास बड़ा है|

वफ़ा ज़फ़ा एक ही सिक्के के दो पहलू
सगा नहीं है कोई फिर भी विष्वास बड़ा है|

टंगा हुआ है कोई आसमाँ के पहलू में
वजह कोई न थी तो क्यूँ किस्मत से लड़ा है|

Apanatva ने कहा…

hamesha kee bhanti hee laajawab gazal...

संध्या शर्मा ने कहा…

मौसम कई आए गए किसको पता
कोई अब तक तन्हा बड़ा है..
भावपूर्ण अभिव्यक्ति... सुन्दर रचना...

devendra gautam ने कहा…

कोपलें खिल न सकीं मौसम की मेहरबानी से
धरती के सीने में अहसास बड़ा है|
------अच्छी रचना है...बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चन्दा भी रातों को जगा है
रोज घटता बढ़ता अरमान बड़ा है

वाह , बहुत खूब ..सुन्दर गज़ल

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सशक्त और सुन्दर गजल!

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

sunder gazalnuma rachna , aap ise agazal kah skti hain
sahityasurbhi.blogspot.com

शारदा अरोरा ने कहा…

सुनील जी , असुविधा के लिए खेद है...पहले मैं रचना को कॉपी करके पेस्ट कर लेती थी , तो पंक्तियों के बीच की दूरी मेरे मन माफिक हो जाती थी , पर कुछ वक्त से ऐसा करने के बाद वो गद्य का रूप ले ले रही है ...रचना प्रकाशित करते ही मैं वापिस ठीक करने के लिए सम्पादित करने गयी ..बेटी का लैप टॉप ज्यादा ही फास्ट ...बस कुछ शब्द सेलेक्ट हो गए और पता नहीं कितना मिनीमाइज हो गए ...बस कितनी ही तरह से उसे ठीक करने में लगी रही ...खैर सुझाव का स्वागत है ..मैं खुद भी इस बात को समझती हूँ ..रचना का हमारी वाणी के स्क्रोल पर चलना , ऐसे वक्त में प्रेजेंटेशन मायने रखता है . धन्यवाद ..आगे से ख्याल रखा जाएगा .

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मत बताना नहीं आयेगी कोई चिट्ठी
इतनी सी खबर में भी तूफ़ान बड़ा है

बहुत उम्दा रचना .....हर पंक्ति अर्थपूर्ण भाव लिए है....

बेनामी ने कहा…

शारदा जी,

बढ़िया प्रस्तुति......सुन्दर |

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

खूबसूरत ग़ज़ल... टंकण की त्रुटियाँ को नज़रंदाज़ किया जा सकता है.. क्योंकि सब लोग एक बराबर दक्ष नहीं होते आधुनिक तकनीक से !

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

वाह.... बहुत सुन्दर....
सादर.....

उम्मतें ने कहा…

वाह ...बहुत खूब !

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

sundar bhavpuran rachna ........

mridula pradhan ने कहा…

मत बताना नहीं आयेगी कोई चिट्ठी
इतनी सी खबर में भी तूफ़ान बड़ा है....bahut achchi hai.