रविवार, 9 अक्टूबर 2011

अहसास की कहन

जिसे जी कर लिखा हो वो छन्द कैसे हो
आड़े टेढ़े रास्ते पर चल कर सिर्फ मकरन्द कैसे हो

जिन्दगी फूलों सी भी हो सकती है
मगर काँटों की चुभन मन्द कैसे हो

अशआर पकड़ते हैं जब जब कलम
अहसास की कहन चन्द कैसे हो

दिया बुझे या जले दिले-नादाँ का
राख तले शोलों की अगन बन्द कैसे हो

गाने लगते हैं सुर में जब जब दर्द-औ-गम
इक सदा गूँजती है मगर दिल बुलन्द कैसे हो

फलसफे जिन्दगी के दिनों-दिन आते हैं समझ
छाले क़दमों तले जुबाँ पे मखमली पैबन्द कैसे हो

14 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

फलसफे जिन्दगी के दिनों-दिन आते हैं समझ
छाले क़दमों तले जुबाँ पे मखमली पैबन्द कैसे हो

उफ़ …………क्या कुछ नही कह दिया……………बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

जिन्दगी फूलों सी भी हो सकती है
मगर काँटों की चुभन मन्द कैसे हो

बहुत सुन्दर
सादर

आकर्षण गिरि ने कहा…

Behtareen... badhai...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

मनोज कुमार ने कहा…

फलसफे जिन्दगी के दिनों-दिन आते हैं समझ
छाले क़दमों तले जुबाँ पे मखमली पैबन्द कैसे हो
ज़िन्दगी ऐसे दिन भी दिखाती है जब पांवों में छले हों और मुख पे मुस्कान सजाना होता है।

रचना दीक्षित ने कहा…

फलसफे जिन्दगी के दिनों-दिन आते हैं समझ
छाले क़दमों तले जुबाँ पे मखमली पैबन्द कैसे हो.

बहुत सुंदर भाव. सुंदर प्रस्तुति. बधाई.

kanu..... ने कहा…

फलसफे जिन्दगी के दिनों-दिन आते हैं समझ
छाले क़दमों तले जुबाँ पे मखमली पैबन्द कैसे हो .bahut hi badi baat bahut hi saral par sacche shabdon me....

सदा ने कहा…

फलसफे जिन्दगी के दिनों-दिन आते हैं समझ
छाले क़दमों तले जुबाँ पे मखमली पैबन्द कैसे हो
बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

अशआर पकड़ते हैं जब जब कलम
अहसास की कहन चन्द कैसे हो
बहुत खूब!

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

फलसफे जिन्दगी के दिनों-दिन आते हैं समझ
छाले क़दमों तले जुबाँ पे मखमली पैबन्द कैसे हो ..behtarin panktiyan..sadar badhayee

आकाश सिंह ने कहा…

आपकी लेखनी में एक जादू है जो किसी अपरिचित को अपनी ओर खिंच ही लती है | धन्यवाद |VISIT HERE... http://www.akashsingh307.blogspot.com/

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत अच्छी भावपूर्ण रचना..बधाई स्वीकारें

नीरज

अनुपमा पाठक ने कहा…

जिन्दगी फूलों सी भी हो सकती है
मगर काँटों की चुभन मन्द कैसे हो
सुंदर!

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग ने कहा…

जिन्दगी फूलों सी भी हो सकती है
मगर काँटों की चुभन मन्द कैसे हो
Bahut khoob