मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

झाँक के देखो तो ज़रा

वक़्त की शाख से टूटे लम्हे
टाँक के देखो तो ज़रा
टूटी है कोई डोर
झाँक के देखो तो ज़रा

पीले पत्तों की खनक
टोह के देखो तो ज़रा
ठहर जाती है खिजाँ
रोक के देखो तो ज़रा

किस्मत को नकारा
ढाँक के देखो तो ज़रा
ज़िन्दगी इतनी भी नहीं मेहरबाँ
भाँप के देखो तो ज़रा

नस-नस में बसा रावण
काँख में देखो तो ज़रा
खुदगर्जियाँ बनीं देहरी
लाँघ के देखो तो ज़रा

हिलते पानी की कहानी कहते
झाँक के देखो तो ज़रा
सारे पत्थर हैं या मरहम
आँक के देखो तो ज़रा

18 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भावमय प्रस्तुति.
प्रस्तुति के लिए आभार,शारदा जी.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आइयेगा.

रचना दीक्षित ने कहा…

नस-नस में बसा रावण
काँख में देखो तो ज़रा
खुदगर्जियाँ बनीं देहरी
लाँघ के देखो तो ज़रा

ओह बहुत गंभीर भाव. सुंदर प्रस्तुति.

Nirantar ने कहा…

duniyaa mein raavan dhoondhte ho
apne andar bhee jhaank lo
sharm se doob jaaoge
jo sach bataaoge

Sunil Kumar ने कहा…

ज़िन्दगी इतनी भी नहीं मेहरबाँ
भाँप के देखो तो ज़रा
बहुत सुंदर प्रस्तुति.........

kshama ने कहा…

नस-नस में बसा रावण
काँख में देखो तो ज़रा
खुदगर्जियाँ बनीं देहरी
लाँघ के देखो तो ज़रा

हिलते पानी की कहानी कहते
झाँक के देखो तो ज़रा
सारे पत्थर हैं या मरहम
आँक के देखो तो ज़रा
Wah! Kya gazab likha hai!

Pallavi saxena ने कहा…

हिलते पानी की कहानी कहते
झाँक के देखो तो ज़रा
सारे पत्थर हैं या मरहम
आँक के देखो तो ज़रा....
वाह वाह !!! बहुत खूब गजब का लिखा है आपने बहुत ही सुंदर भाव संयोजन...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

पीले पत्तों की खनक
टोह के देखो तो ज़रा
ठहर जाती है खिजाँ
रोक के देखो तो ज़रा

Bahut Hi Sunder

vidya ने कहा…

वाह!!!
बहुत सुन्दर...भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

poonam ने कहा…

bahut sunder...

संध्या शर्मा ने कहा…

वक़्त की शाख से टूटे लम्हे
टाँक के देखो तो ज़रा
टूटी है कोई डोर
झाँक के देखो तो ज़रा
बहुत सुन्दर भाव...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

good

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

नस-नस में बसा रावण
काँख में देखो तो ज़रा
खुदगर्जियाँ बनीं देहरी
लाँघ के देखो तो ज़रा

हिलते पानी की कहानी कहते
झाँक के देखो तो ज़रा
सारे पत्थर हैं या मरहम
आँक के देखो तो ज़रा

बहुत सुन्दर, लाजबाब रचना !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

पीले पत्तों की खनक
टोह के देखो तो ज़रा
ठहर जाती है खिजाँ
रोक के देखो तो ज़रा

उफ़ कहाँ से खोज लाती हैं इतने गहरे और सुन्दर शब्द...इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें

नीरज

शारदा अरोरा ने कहा…

डॉक्टर राजेन्द्र जी ,
यहाँ अपने अन्दर के रावण को ही कांख में यानि बगल में यानि अपने नियंत्रण में रखने के लिए कहा गया है ...सभी टिप्पणी कर्ताओं का बहुत बहुत धन्यवाद ..

सदा ने कहा…

हिलते पानी की कहानी कहते
झाँक के देखो तो ज़रा
सारे पत्थर हैं या मरहम
आँक के देखो तो ज़रा
बहुत ही बढि़या।

sangita ने कहा…

बहुत ही बढि़या,भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

avanti singh ने कहा…

बहुत उम्दा लिखा है आप ने

आप को होली की खूब सारी शुभकामनाएं

नए ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित है

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mridula pradhan ने कहा…

bahut pasand aayee.....