रविवार, 3 मार्च 2013

बुझ-बुझ के जले


वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का 
कौन जाने बुझ-बुझ के जले , जिया बेकरार किसी का 

हाले-दिल किस को सुनाएँ 
क्यूँ दिल है सोगवार किसी का 

रँग चाहत के भर तो लेते हम भी 
हासिल न हुआ इकरार किसी का 

हाथ लगते ही बहार आ जाती 
तमन्नाओं ये नहीं रोज़गार किसी का 

नरगिसी बातों में फिसल तो जाते हैं 
चमन में क्या है ऐतबार किसी का 

वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का 
कौन जाने बुझ-बुझ के जला है जिया बेकरार किसी का 

19 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi sunder..excellent maam.
    हाथ लगते ही बहार आ जाती
    तमन्नाओं ये नहीं रोज़गार किसी का

    .
    these lines steal the show.

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  2. वाह....!
    बहुत बढ़िया...!
    आपकी इस पोस्ट का लिंक आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है।

    जवाब देंहटाएं
  3. BlogVarta.com पहला हिंदी ब्लोग्गेर्स का मंच है जो ब्लॉग एग्रेगेटर के साथ साथ हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट भी है! आज ही सदस्य बनें और अपना ब्लॉग जोड़ें!

    धन्यवाद
    www.blogvarta.com

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  4. बहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।

    मेरी नई रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

    ये कैसी मोहब्बत है

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छे शब्दो के मनको से बनी माला

    जवाब देंहटाएं
  6. आप सब को रचना पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया
    शारदा अरोरा

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|

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  8. वाह!!!बहुत सुन्दर गजल ,,, बधाई शारदा जी,,,,

    Recent post: रंग,

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  9. रँग चाहत के भर तो लेते हम भी
    हासिल न हुआ इकरार किसी का ..
    बहुत खूब ... बस एक इकरार ही तो चाहिए ... ये रंग भर जाते हैं ...

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं