तुम्हारी आँखों में हौसला चमकता बहुत है
तुम्हें छू कर जो आतीं हैं हवाएँ
इनकी नमी से अपनापन टपकता बहुत है
तुम्हारे आ जाने से आ जाती है रौनक
यादों की क्यारी में तुम्हारा चेहरा दमकता बहुत है
तुम्हारी पलकों पर रक्खे हैं जो ख़्वाब
कोई इनमें ही आ-आ के बहकता बहुत है
तुम्हें देखूँ ठिठक जातीं हैं निगाहें
ये मन किसी बच्चे सा चहकता बहुत है




9 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-12-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1838 में दिया गया है
धन्यवाद
तुम्हें देखूँ ठिठक जातीं हैं निगाहें
ये मन किसी बच्चे सा चहकता बहुत है
..बहुत खूब!
प्यारभरी प्रस्तुति
सुन्दर रचना
ये दिल भी क्या चीज है बच्चो की तरह रोता है
सायद किसी की याद में खामोश हो के सोता है
बहुत खुबसूरत रचना !
नारी !
पुरुष ,नारी ,दलित और शास्त्र
तुम्हारी पलकों पर रक्खे हैं जो ख़्वाब
कोई इनमें ही आ-आ के बहकता बहुत है
bahut khuub!!
bahut khoob
एक एक शब्द रग में समाता हुआ..!!
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