बुधवार, 24 दिसंबर 2014

तुम्हारी आँखों में

तुम्हारी आँखों में हौसला चमकता बहुत है 
तुम्हारे आस-पास समाँ महकता बहुत है 

तुम्हें छू कर जो आतीं हैं हवाएँ 
इनकी नमी से अपनापन टपकता बहुत है 

तुम्हारे आ जाने से आ जाती है रौनक 
यादों की क्यारी में तुम्हारा चेहरा दमकता बहुत है 

तुम्हारी पलकों पर रक्खे हैं जो ख़्वाब 
कोई इनमें ही आ-आ के बहकता बहुत है 

तुम्हें देखूँ ठिठक जातीं हैं निगाहें 
ये मन किसी बच्चे सा चहकता बहुत है 

9 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-12-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1838 में दिया गया है
धन्यवाद

कविता रावत ने कहा…

तुम्हें देखूँ ठिठक जातीं हैं निगाहें
ये मन किसी बच्चे सा चहकता बहुत है
..बहुत खूब!
प्यारभरी प्रस्तुति

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सुन्दर रचना
ये दिल भी क्या चीज है बच्चो की तरह रोता है
सायद किसी की याद में खामोश हो के सोता है

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत खुबसूरत रचना !
नारी !
पुरुष ,नारी ,दलित और शास्त्र

Alpana Verma ने कहा…

तुम्हारी पलकों पर रक्खे हैं जो ख़्वाब
कोई इनमें ही आ-आ के बहकता बहुत है

bahut khuub!!

devendra gautam ने कहा…

bahut khoob

संजय भास्‍कर ने कहा…

एक एक शब्द रग में समाता हुआ..!!

Siddharthnagar Bazar ने कहा…

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