रविवार, 19 अगस्त 2012

चाहिये भी क्या

आदमी को चाहिये भी क्या 
एक चुटकी प्यार ही ना 

है चाहतों का ऐसा असर 
नस नस में घुला खुमार ही ना 

गालों पर खिलता गुलाब 
हथेलियों पे रची रँगे-हिना 

बज रहे हैं तार दिल के 
साज दिल का है सितार ही ना 

कौन धड़कनों में शामिल है 
दिल की बस्ती है गुलज़ार ही ना 

रूह से मिटता नहीं उसका ख्याल 
रगों में खून सा शुमार ही ना 

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

ज़िन्दगी की सोहबत


न तुम हमारे , न घर हमारा 
हम ही नादान हैं दिल लगाए हुए  

मजबूर हैं आदत से परिन्दे
तिनकों में हैं खुद को उलझाए हुए

अपनी दुनिया तो अँधेरी है
अपने क़दमों का दम भी भुलाए हुए

हाथ जो झटका तुमने
हैं आसमान तक छिटकाए हुए

हार गईं झूठी तसल्लियाँ
चला रहीं थीं जो भरमाये हुए

ये तो ज़िन्दगी की सोहबत है
सहराँ में है जो फूल खिलाये हुए

चले भी आओ के रुत बदली है
वफ़ा की बात भी है फलक पे छाये हुए

रविवार, 22 जुलाई 2012

सूरज सा निकलते रहिये

ज़िन्दगी भोर है , सूरज सा निकलते रहिये  
चहकिए चिड़ियों सा , हर लम्हे को उत्सव कहिये 

धूप ही धूप  है बराबर सबके लिए   
अपने गीतों में दुनिया की पीड़ा कहिये   

ज़िन्दगी ले जाए चाहे जिस भी  तरफ 
उफ्फ़ न करिए , सागर के थपेड़े सहिये 

हर दिन है नया दिन , कल की क्यूँ सोचें 
गुलाबों सा खिलिये , महकते रहिये   

काम आये जो किसी के , इन्सान है वही  
ये जनम , ऐसा जीवन है तो सार्थक कहिये  

मत कोसिए  अँधेरों को , ये चुनौती हैं 
मन का दीप जला , रात के सँग सँग  बहिये 

हौसला , ज़िन्दादिली , उम्मीद का रँग  देखो 
उग आता है सूरज , इनकी बदौलत कहिये  

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अन्धेरे में रहे  

साथ चलते हुए यूँ भी अक्सर
अजनबी भी बन जाते अपने 
ये कैसे सफ़र पे हम तुम
दिन रात के फेरे से रहे 

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे

दिल लगाया तो चोट खाई भी
दिल है बड़ा सयाना तो सौदाई भी
हाय अपने ही न हुए हम
गैर के खेमे में डेरे में रहे

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे

कौन चुनता है पग से काँटे 
कौन बिछाता है राहों में फूल 
ये किसी और ही दुनिया की बातें होंगी 
हम जमीं पर इसी घेरे में रहे  

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे


शुक्रवार, 25 मई 2012

लौट आते परिन्दे

क्या कहिए अब इस हालत में ,
अब कौन समझने वाला है

कश्ती है बीच समन्दर में
तूफाँ से पड़ा यूँ पाला है

हम ऐसे नहीं थे हरगिज़ भी
हालात ने हमको ढ़ाला है

कह देतीं आँखें सब कुछ ही
जुबाँ पर बेशक इक ताला है

लौट आते परिन्दे जा जा कर
घर में कोई चाहने वाला है

बाँधने से नहीं बँधता कोई
आशना क्या गड़बड़ झाला है

ज़ेहन में उग आते काँटे
ये रोग हमारा पाला है

घूम आते हैं अक्सर हम भी
वक्त की तलियों में छाला है

नजरें फेरे हम जाप रहे
बाँधें आसों की माला है

सोमवार, 14 मई 2012

भरी दुनिया में तन्हा

ये मेरा दिल जो तुमने तोड़ा है   
भरी दुनिया में तन्हा  छोड़ा है    

काँच का कोई खिलौना हूँ मैं शायद   
खेल कर हाथ से जो छोड़ा है   

ढह जाती है लकड़ी दीमक लगी  
इश्क ने ऐसा घुना मरोड़ा है   

साथी भी मिले साथ भी मिले  
किस्मत को जो मन्जूर थोड़ा है   

ढल तो जाते हैं चाहतों के समन्दर  
ये तुमने हमें कहाँ लाके छोड़ा  है  

शिकायत तो नहीं गुले-गुलशन से  
वीरानी-ए-सहरा ने हमें तोड़ा है   
 
खता कोई तो होगी अपनी भी  
मेहरबानियों ने क्यूँ मुँह मोड़ा है 

ये वादियाँ तो बड़ी  सुहानी थीं   
ये कैसे मोड़ ने तोड़ा -मरोड़ा है  

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

तुम ही तुम हो

यूँ ही नहीं आते हैं जलजले 
धुरी से जमीं अक्सर खिसकी ही मिले 

परेशान है दुनिया सारी 
जाने किस दौड़ में शामिल सी ये लगे 

मुस्कुरा के जो चल दे अकेले ही 
आधार कोई उँगली पकड़े मिले 

नया नहीं है कुछ भी सूरज के तले 
नया तो वो है जो सह ले जिगर से चले 

चढ़ आती है धूप मुंडेरों पर  
धूप छाया की तरह जिन्दगी ही खिले 

तारीफ़ तुम्हारी , गिले भी तुमसे 
तुम ही तुम हो हमारे साथ चले