सोमवार, 12 जनवरी 2009

गाते हैं तेरे हौसले

गाते हैं तेरे हौसले

गाता है धरती आसमान

गाते हैं तेरे मन प्राण

बोलती है आँखों की जुबान


माहौल में रचे बसे

मन की तहें खोलते

अबीर और हिना की तरह

रँग छोड़ते निशान


एक सिरा तेरे हाथ है

दूसरा आँधियों के पार

सूरज को मात देती

हौसले की ये मुस्कान


गाते हैं तेरे हौसले
गाता है धरती आसमान

धरती गगन को नापती

तेरे पँखों की उड़ान

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,

    ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  2. सकारात्मक सोच को बढावा देती..होसलों भरी कविता..बहुत अच्छी है.

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  3. बहुत सुंदर सोच के साथ सुंदर रचना...बधाई।

    जवाब देंहटाएं

मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं