शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

ठण्डी हवा के झोंके

ठण्डी हवा के झोंके , छूकर हैं जब गुजरते
छूकर हैं उनको आये , वादों से जो मुकरते

खुशियों के ये इरादे , कैसे सनम पकड़ते
बहती हवा के मानिंद , दामन में न ठहरते

सिर चढ़ के जो बोले , देखो सुरूर चढ़ते
मीठी सी नीँद बन कर , दिल में हैं यूँ उतरते

ठहरा है काफिला भी , देखो इसे गुजरते
खुशबू है पीछा करती , दामन से जो उलझते

ठण्डी हवा के झोंके , छूकर हैं जब गुजरते
गहरी सी टीस बन कर , मौसम को यूँ निगलते


20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छी ठंडे झोंकों की तरह...

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  2. सिर चढ़ के जो बोले , देखो सुरूर चढ़ते
    मीठी सी नीँद बन कर , दिल में हैं यूँ उतरते
    बहुत खूब बधाई सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये

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  3. खुशियों के ये इरादे , कैसे सनम पकड़ते
    बहती हवा के मानिंद , दामन में न ठहरते

    -बढि़या है!

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  4. ठहरा है काफिला भी , देखो इसे गुजरते
    खुशबू है पीछा करती , दामन से जो उलझते
    लाजवाब...बहुत खूब...
    नीरज

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  5. बहुत बढिया जैसे ठंडी हवा का झोका छु के निकल गया। लाजवाब रचना

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  6. मन को ठंडक देती ,शांति पहुंचाती अच्छी रचना ,बधाई |

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  7. बहुत अच्छी रचना है. ऐसे 'ठंडी हवा के झोंके' बार बार मिलते रहें.

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  8. "ठहरा है काफिला भी , देखो इसे गुजरते
    खुशबू है पीछा करती , दामन से जो उलझते"

    बेहतरीन काव्य-पंक्तियाँ । आभार ।

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  9. आज 29/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  10. bahut sundar ghazal likhi hai aapko pahli baar padh rahi hoon bahut achcha laga.

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं