शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

कुछ भी नहीं पूछा है उसने

परछाइयों से लड़ बैठी हूँ
अब कोई मुझे बुलाये न

कुछ भी नहीं पूछा है तुमने
ये कोई मुझे बताये न

दरिया तो पार किया मैंने
अब साहिल पे अटकाये न

पतवारें तो होती बहाना हैं
दम अपना कोई भुलाये न

नहीं पछाड़ा मुझको दरिया ने
किनारे से कोई लड़ाये न

हाय कोई ढाल बनी होती
पानी पर कोई चलाये न

कुछ भी नहीं पूछा है उसने
परछाईँ सा कोई डराये न

9 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

पतवारें तो होती बहाना हैं
दम अपना कोई भुलाये न
शारदा जी ,बहुत सुन्दर , बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

पूरी गजल ही शानदार है।
हर शेर दाद का हकदार है!

Mithilesh dubey ने कहा…

हर एक शब्द लाजवाब रही । बहुत ही उम्दा रचना ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पतवारें तो होती बहाना हैं
दम अपना कोई भुलाये न ...

आशा और उमंग भारती सुन्दर रचना है .........

कविता रावत ने कहा…

परछाइयों से लड़ बैठी हूँ
अब कोई मुझे बुलाये न
Gahare bhavon se bhari aapki rachana bahut achhi lagi.
Aap nainital se hai jaankar bahut achha laga.Mai bhi pauri se hun. Pahad bahut bhate hai mujhe.
Hardik Shubhkamnayen.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

भावनाएं शब्दों का रूप लेकर इसी तरह अयां होती रहें
इसी कामना के साथ...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

आज चर्चा में ने कहा…

achhi ghazal hai. aap mere blog par aye achha laga. apka compliment bhi bhadiya hai. chetan

Siddharthnagar Bazar ने कहा…

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