रविवार, 4 अप्रैल 2010

टहलाते-टहलाते

गम टहल गया मुझको टहलाते-टहलाते
आजिज आ गया था मेरे समझौते से , राह भूल गया

बाद मुद्दत के हुई उनसे मुलाक़ात जो
ईद का चाँद उतरा है फलक से , राह भूल गया


आज फिर है इश्क की बाजी
गुरूर से कह दो पहरेदार ,राह भूल गया


ये कौन सा मुकाम है
निशान बोलते खड़े राहगीर ,राह भूल गया


शुक्रिया बहती हुई हवाओं का है
सुलगा के चिन्गारी तूफ़ान , राह भूल गया

14 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रिया बहती हुई हवाओं का है
    सुलगा के चिन्गारी तूफ़ान , राह भूल गया ....sundar...

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  2. गम टहल गया मुझको टहलाते-टहलाते
    आजिज आ गया था मेरे समझौते से , राह भूल गया

    DAM DAR LINE HE

    DIL TUTE HUVE KO JARUR PADAUNGA ME




    http://kavyawani.blogspot.com/

    SHEKHAR KUMAWAT

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  3. बहुत खूब ..........सुन्दर रचना

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  4. गम टहल गया मुझको टहलाते-टहलाते
    आजिज आ गया था मेरे समझौते से
    ............... राह भूल गया.
    ये भाव...बहुत कुछ सोचने पर विवश कर रहा है.
    सच...अगर गम से...हालात से..समझौता कर लिया जाये, तो इंसान की बहुत सारी उलझनें दूर हो जाती है.
    एक शायर ने यूं भी कहा है-
    चला जाता हूं हंसता खेलता दौरे-हवादिस से
    अगर आसानियां हों, ज़िन्दगी दुश्वार हो जाये.

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  5. शारदा जी!
    ग़ुस्ताखी मुआफ़!
    आकी रचना को मैं कुछ इस तरह पढ़कर खुश होना चाहता हूं
    कृपया इजाजत दें

    गम टहल गया मुझको टहलाते.टहलाते
    आजिज आ गया था मैं बहलाते बहलाते

    बाद मुद्दत के हुई उनसे मुलाक़ात जो
    ईद का चाँद उतर आया है आते आते

    आज फिर इश्क की बाजी है लगी
    अब मजा आने लगा है सितम से टकराते

    कौन जाने कौन सा मकाम है ये
    निशान बोलते नहीं ,नहीं तो बतलाते

    ‘शारदा’ शुक्रिया है झौंको का
    दिल की जो आग को हैं भड़काते

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  6. Dr.R.Ramkumar ji
    बहुत अच्छे , हमारी ग़ज़ल से आप ने भी शायरी कर ली ! जैसे आप का जी चाहे रच लीजिये , मगर मैं अनुभव को झूठ कैसे बोलूँ .....मन को बहलाने से ये और बड़ा खिलौना मांगता है ....जब छोड़ देते हैं परवाह करते ही नहीं , है तो है , ये भी एक तरह का समझौता है , बस फिर गम की दाल गलती ही नहीं |आपको लिखने के लिए मजबूर कर दिया मेरी रचना ने , धन्यवाद |
    शारदा अरोरा

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  7. शुक्रिया बहती हुई हवाओं का है
    सुलगा के चिन्गारी तूफ़ान , राह भूल गया
    Sapoorn rachana stabdh kar deti hai...kuchh kahun,itni qabiliyat nahi..sachme!

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  8. आप के ब्लाग पर संभवतः पहली बार ही आना हुआ, पर बहुत ही अच्छी रचनायें पढ़ने को मिली......बहुत बहुत बधाई.....

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  9. शुक्रिया बहती हुई हवाओं का है
    सुलगा के चिन्गारी तूफ़ान , राह भूल गया

    इन शेरों में बहुत गहरे भाव छिपे हैं ... लाजवाब ...

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  10. lafzon mein saans leti huee
    mn ki bhaavnaaeiN haiN....
    achhee haiN .

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  11. शारदा जी...

    ये कौन सा मुकाम है
    निशान बोलते खड़े राहगीर ,राह भूल गया...

    खून की कलम आयी कहाँ से.
    आपकी रचना ने किया मुग्ध ऐसा ...
    भूल गया शब्दों को उकेरना...

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं