सोमवार, 17 जून 2013

न चेहरे की ढाल हुआ

मेहँदी घुल गई नस-नस में 
फिर भी रँग न गुलाल हुआ 

चढ़ते सूरज को नमन 
ढलता सूरज बेहाल हुआ 

मन की शिकन बोल उठे 
हाय क्या आदमी का हाल हुआ 

लीपा-पोती , रँग-रोगन 
न चेहरे की ढाल हुआ 

चलता-पुर्जा , ढीली-चूलें 
आदमी अब सिर्फ माल हुआ 

10 टिप्‍पणियां:

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

waah bahut khoob

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

चलता-पुर्जा , ढीली-चूलें
आदमी अब सिर्फ माल हुआ,,,

वाह,,, बहुत सुंदर गजल,,,

RECENT POST: जिन्दगी,

Jyoti khare ने कहा…

लीपा-पोती , रँग-रोगन
न चेहरे की ढाल हुआ--------

वर्तमान के सच को उजागर करती रचना
बहुत सुंदर
बधाई


आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
पापा ---------



अरुन अनन्त ने कहा…

आपकी यह रचना कल मंगलवार (18 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया रचना
बहुत सुंदर

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपके ब्लॉग पर देर से आने के लिए क्षमा

लाजवाब रचना -- बधाई

Kailash Sharma ने कहा…

चढ़ते सूरज को नमन
ढलता सूरज बेहाल हुआ

...आज का यथार्थ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

kshama ने कहा…

चढ़ते सूरज को नमन
ढलता सूरज बेहाल हुआ
Bas yahee haal to apna hai!Kya khoob likh dala aapne!

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढिया रचना!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूबसूरत शेर हैं सभी ...