मंगलवार, 6 मई 2014

पढ़े , तेरे खत फिर से

बरसों बाद पढ़े , तेरे खत फिर से 
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से 

वो जो धूप जमी थी, निगाहों के आस-पास 
तेरे चेहरे पे झिलमिलाती हुई , दिखी है इधर फिर से 

छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी 
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से 

रस्मों के सहारे से , महबूब बने तुम 
मेरी दुनिया दिल से , चली है इधर फिर से 

कौन जाने किसके खतों का , अन्जाम हो क्या 
दफ़न हों सीने में या जी उट्ठे ,लम्हा-लम्हा इधर फिर से 

दुनिया से छुपा कर , लिक्खा था जिन्हें 
फूल बन कर खिले हैं वही , महके हैं इधर फिर से 

12 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

वाह.... उम्दा पंक्तियाँ

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

.

"बरसों बाद पढ़े , तेरे खत फिर से
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से"

वाऽह…!

क्या बात है !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बरसों बाद पढ़े , तेरे खत फिर से
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से
वाह ... क्या बात है .. मज़ा आ आया इस मतले पर ... गज़ब ...

Mithilesh dubey ने कहा…

वाह-वाह क्या बात है। बहुत ही उम्दा रचना। बधाई।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8-5-14 को चर्चा मंच पर दिया गया है
आभार

शारदा अरोरा ने कहा…


dr.mahendrag ने आपकी पोस्ट " तो अपना क्या होगा " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से
सुन्दर, वक्त वक्त की बात है



dr.mahendrag द्वारा गीत-ग़ज़ल के लिए बुधवार, मई 07, 2014 को पोस्ट किया गया

शारदा अरोरा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया ...

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर !

Darshan jangra ने कहा…

बहुत सुंदर !

Unknown ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (11-05-2014) को ''ये प्यार सा रिश्ता'' (चर्चा मंच 1609) पर भी होगी
--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत उम्दा !
बेटी बन गई बहू

कविता रावत ने कहा…

दुनिया से छुपा कर , लिक्खा था जिन्हें
फूल बन कर खिले हैं वही , महके हैं इधर फिर से
....छुपकर दिल से जो लिखी होती हैं ..तभी तो महकती हैं इधर उधर
बहुत खूब!