गालिब ने कहा है
मौत का एक दिन मुअइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
हम ये कहते हैं
सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है
क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती
मौत का एक दिन मुअइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
हम ये कहते हैं
सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है
क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती




6 टिप्पणियां:
बहुत बढिया!!
सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है
kya karega in chak gireban valon ki-----bahut hi sunder likha hai bdhai
अच्छा लगा पढ़कर, अभिव्यक्ति सुंदर है !
क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती
सही, बिलकुल सही.
सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
..बहुत खूबसूरत कथ्य .
मृत्यु नही भयभीत कर सकी ,
आजादी के परवानो को ।
डर लगता है काल देख कर,
केवल कायर इनसानों को।।
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