गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

गालिब ने कहा है

गालिब ने कहा है
मौत का एक दिन मुअइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
हम ये कहते हैं
सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती


जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है


क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती

6 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया!!

सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है

निर्मला कपिला ने कहा…

kya karega in chak gireban valon ki-----bahut hi sunder likha hai bdhai

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

अच्छा लगा पढ़कर, अभिव्यक्ति सुंदर है !

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती

सही, बिलकुल सही.

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) ने कहा…

सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
..बहुत खूबसूरत कथ्य .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मृत्यु नही भयभीत कर सकी ,
आजादी के परवानो को ।
डर लगता है काल देख कर,
केवल कायर इनसानों को।।