सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

मेरे मन ने गाना सीख लिया

मेरे मन ने गाना सीख लिया
स्वप्न सरीखी दुनिया से ताल मिलाना सीख लिया

बच्चों सा ये रोता था , बच्चों सा ही चहकता था
निश्छल होकर भी निश्छल था
क्या खोना है , क्या पाना है , सुबह का तराना सीख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया


बूढों सी नसीहत देता था , हर बात में अगला पिछला कर
क़दमों को पंगु कर देता
जो होगा देखा जायेगा , क़दमों ने थिरकना सीख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया

लहरों का टकरा-टकरा कर , अठखेलियाँ करना देखा है
सागर से मचलना देखा है
इन रँग-बिरँगी चिड़ियों से , इन सा ही चहकना सीख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया


डरते थे शक करते थे , नियमों से बंधी इस दुनिया में
नियमों को देखा करते थे
कर्मों के बही-खाते में , अपना भी तराना देख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मन ने गाना सीख तो, हँस - हँस गयी जवानी है।
परिवेशों ने सब सिखलाया, सुख की सही कहानी है।

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) ने कहा…

डरते थे शक करते थे , नियमों से बंधी इस दुनिया में
नियमों को न देखा करते थे
कर्मों के बही-खाते में , अपना भी तराना देख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....सुंदर कविता.

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

कर्मों के बही-खाते में , अपना भी तराना देख लिया
सुंदर कविता.
very good*******

Vinay ने कहा…

मन भावना के हिलोरे लेने लगा!

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