बचपन याद से गया नहीं है
अल्हड़ है ये अब भी बेशक
उम्र के हाथों छला गया है
मैंने चाहा गीत मैं गा लूँ
सूरज से इक किरण चुरा लूँ
माथे में इक सोच बसा लूँ
अंगने में सूरज जो खड़ा है
प्यार का उबटन , वफ़ा की खुशबू
क्यों न मैं मल-मल के नहा लूँ
मेरा चाँद-खिलौना भी तू
मेरे माथे ताज जड़ा है




6 टिप्पणियां:
khayalon ko lafz dena koi aapse seekhe
pyaar ka ubtan vafa ki khushboo.....
wah wah wah wah
BADHAI
वह शारदाजी किtतनी मसूमियत से ब्लोग को प्यार से सराबोर कर दिया बधाई
मल के भावों को बखूबी बयां किया है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
प्यार का उबटन , वफ़ा की खुशबू
क्यों न मैं मल-मल के नहा लूँ
मेरा चाँद-खिलौना भी तू
मेरे माथे ताज जड़ा है ....pyaar bhari taajgi se bhar gaya mann
aapka lekhan har lihaaj se kabil-e-tariif hai
daad kubool karen
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