शनिवार, 6 जून 2009

इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर

इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर
चुन लाये कुछ उजली किरणें
हुस्न के माथे ताज सजे फ़िर
जन्मों का सारा दुःख भूले

रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
दिन का सेहरा इश्क के सर पर
इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले

वफ़ा की चाहत है सबको ही
चाहत है पर वफ़ा नहीं है
सच्चा है पर सगा नहीं है
अपनी हस्ती आप ही भूले


15 टिप्‍पणियां:

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

सही लिखा आपने ,आज रिश्ते तो है ..लेकिन अपनापन कहीं खो गया है...!सब रिश्ते सच्चे है,पर सगे कतई नहीं है...

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खुब। खासकर आपकी ये लाईन "इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले" बहुत हि अच्छी लगी। आभार प्रकट करता हूं "इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर" के लिए।

Unknown ने कहा…

chahat hai par vafa nahin hai.............
saccha hai par saga nahin hai ............
kya baat hai !
badhai!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

सुन्दर रचना शारदा जी...

नीरज

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

युगों-युगों से चाहत और वफा,
संग-संग रहे हैं,
हुस्न-इश्क दोनों जीवन के,
बेहतर अंग रहे हैं।
किन्तु आजकल की चाहत में,
सच्ची वफा नही है,
इसीलिए तो हरे-भरे,
गुलशन बदरंग रहें हैं।।

संजय सिंह ने कहा…

सुन्दर रचना.
क्या लिखा है आपने ..... बहुत सुन्दर
"वफ़ा की चाहत है सबको ही
चाहत है पर वफ़ा नहीं है"

डॉ .अनुराग ने कहा…

रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
दिन का सेहरा इश्क के सर पर
इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले

dilchasp......

Bunga ने कहा…

nice blog

Science Bloggers Association ने कहा…

सरल ढंग से सुंदर कविता लिखने में आपका जवाब नहीं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

gazalkbahane ने कहा…

रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
दिन का सेहरा इश्क के सर पर

बहुत खूब फरमाया आपने

श्याम सखा श्याम
http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें

karuna ने कहा…

सच्चा है पर सगा नहीं है
अपनी हस्ती आप ही भूले ,,
यह लाइने आज के समय में जीवन के बहुत करीब हैं ,अगर सगे रिश्ते नहीं मिलते तो हमें दुखी न होकर सच्चे रिश्तों को ही पकड़ कर जीवन में सार्थकता लानी चाहिए |
एक अच्छी रचना के लिए बधाई

Arvind Kumar ने कहा…

रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
दिन का सेहरा इश्क के सर पर
इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले
ye line to gazab dha gayi

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

रचना अच्छी लगी.......बहुत बहुत बधाई....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

वफ़ा की चाहत है सबको ही
चाहत है पर वफ़ा नहीं है
सच्चा है पर सगा नहीं है
अपनी हस्ती आप ही भूले
बहुत सुन्दर तरीके से आपने जिन्दगी के हालत को बयान किया है .. आपकी लेखनी को प्रणाम
प्रदीप मनोरिया
09425132060