शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

जो जी चाहे


जो जी चाहे वो घड़ियाँ याद कर लेना
जो साथ गुजरीं थीं वो कड़ियाँ आबाद कर लेना

१ नहीं मालूम हमको है , कहाँ जाती हैं ये राहें
हमें मालूम इतना है , बड़ी प्यासी हैं ये रूहें
बड़ी प्यासी हैं ये रूहें

२ कहाँ मिट्टी के माधो तुम , कहाँ हूँ मैं भी ठहरी सी
टकरा के किन्हीं नाजुक पलों में , न तन्हाँ छोड़ जाना तुम
न तन्हाँ छोड़ जाना तुम

३ वादे होते हैं सात जन्मों के , इरादे हों वफ़ा के जो
थोड़ी सुबहें , थोड़ी शामें , ये जन्म तो आशना के नाम हो जाए
आशना के नाम हो जाए

7 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

अच्छी रचना...दिल से लिखी हुई...वाह...
नीरज

सदा ने कहा…

जो जी चाहे वो घड़ियाँ याद कर लेना
जो साथ गुजरीं थीं वो कड़ियाँ आबाद कर लेना !

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

विरह-व्यथा है गीत, गीत में छाई करुण कथा है।
यादों और वादों की इसमें मुखरित हुई व्यथा है।।

सीधी-सच्ची बात यही है, समय बदलता रहता है।
पानी कभी बर्फ बनता और कभी पिघलता रहता है।।

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Wahwa...

Unknown ने कहा…

shaardaji kamaal hai.....
aapki shabdaavali bhi
aur aapki kaavyashaili bhi

vaakai khoob soorat rachna............
badhaai !

Dev ने कहा…

Bahut sundar rachana..really its awesome...

Regards..
DevSangeet

शोभना चौरे ने कहा…

कहाँ मिट्टी के माधो तुम , कहाँ हूँ मैं भी ठहरी सी
टकरा के किन्हीं नाजुक पलों में , न तन्हाँ छोड़ जाना तुम
न तन्हाँ छोड़ जाना तुम

pyarasa anunnay
achhi rachna
badhai