मंगलवार, 21 जुलाई 2009

होता है आदमी भी खुदा

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता

औरों के जख्म-छालों पर
जब वो मरहम रखता होता

दिखता नहीं है कभी खुदा
बेशक उसका ही नजारा होता

नजर नजर का फेर है
जर्रे-जर्रे उसका ही पसारा होता

बहुत दूर नहीं वो हमसे
फैसले की घड़ी में इधर या उधर होता

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता




9 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

बहुत ही गहरी सम्वेदनावो को दिखाती ये रचना ......अतिसुन्दर

M VERMA ने कहा…

नाखुदा भी किसी के लिये खुदा होता है
===
सुन्दर जज्बात पिरोया है आपने

अनिल कान्त ने कहा…

कितने अच्छे तरीके से आपने सच कहा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आदमी के प्यार को, रोता रहा है आदमी।
आदमी के भार को, ढोता रहा है आदमी।।

श्यामल सुमन ने कहा…

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता

सुन्दर पंक्तियाँ। वाह।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

दिगम्बर नासवा ने कहा…

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता
क्या बात कही है............ आदमी कभी कभी खुदा भी हो जाता है............. शर्त ये है की वो इंसा तो हो............ बढ़िया लिखा है

jamos jhalla ने कहा…

vaakai INSAAN hi to khudaa hotaa hai.jhalli-kalam-se
angrezi-vichar.blogspot.com
jhallevichar.blogspot.com

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

namaskaar sharda ji yek sakaratmak drsti kon prstut karti jivan jine ki gati ko sanyojit karti rachna
होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता

bhut khub 3
mera prnaam swikaar kare
saadar
praveen pathik
9971969084

pooja ने कहा…

bahut badiya likhi haa........aise hi aachi likhte rahe aap