सोमवार, 11 जनवरी 2010

कोई कुण्डी-ताला खोल गया

क्या जाने क्या बोल गया
लो ये भी पिछला साल गया

मत रह जाना बातों -बातों में
उड़ते हैं परिंदे वे ही तो
गढ़ते हैं कसीदे नभ की शान में जो
कोई कुण्डी-ताला खोल गया
क्या जाने क्या बोल गया

कुछ गुपचुप बातें हैं करते
पिछले सालों के पन्ने भी
चमकते हैं सुनहरी अक्षर ही तो सदियों तक
कानों में मिश्री घोल गया
क्या जाने क्या बोल गया

कुछ घड़ियाँ गुजरीं रो-रो के
जिन पलों न ठहरते पाँव जमीं
जिन्दा तो वही पल सालों -साल रहे
यादों के पन्ने खोल गया
क्या जाने क्या बोल गया

8 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

यादों के पन्ने खोल गया
क्या जाने क्या बोल गया
बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

अजय कुमार ने कहा…

गुजरे साल पर अच्छी अभिव्यक्ति

siddheshwar singh ने कहा…

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

लाजवाब रचना....खास तौर पर कुण्डी ताले शब्द का प्रयोग बहुत मन भावन लगा...
नीरज

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

wah

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

शारदा जी, आदाब
बहुत ही सुन्दर रचना है...
मेरा मानना है-
बीत गया सो बीत गया अब छोड़ो साल पुराने को
अब नववर्ष का शुभागमन मुबारक हो ज़माने को
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नव वर्ष पर बढ़िया प्रस्तुति।
लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की
हार्दिक शुभकामनाएँ!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

क्या जाने क्या बोल गया
कानों में मिश्री घोल गया

कोई कुण्डी-ताला खोल गया
लो ये भी पिछला साल गया
...वाह.