रविवार, 5 सितंबर 2010

छूटे न अपनी आस का झाला

चुक जाये जब सब्र का प्याला
कैसे मैं पी लूँ फिर हाला


यहाँ नहीं है कोई मीरा
और नहीं है कृष्ण रखवाला


दुख की रात बहुत लम्बी है
और पड़ा है जुबाँ पे ताला


किसने अपना धर्म है छोड़ा
सूरज ,चन्दा ,गगन मतवाला


हम भी आये हैं मन रँग कर
और ओढ़ कर एक दुशाला


जोग ,रोग ,सोग भोग कर
छूटे न अपनी आस का झाला


प्यास सभी को उसी घूँट की
जैसे जीवन हो मधुशाला

19 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

वाह …………अद्भुत भाव भरे हैं।

Ashish (Ashu) ने कहा…

बेहद उम्दा...

Unknown ने कहा…

साधु साधु !

कमाल की रचना.........

बहुत ख़ूब कहा ..........बधाई !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर भावों से भरी सुन्दर रचना ...

kshama ने कहा…

प्यास सभी को उसी घूँट की
जैसे जीवन हो मधुशाला
Bahut gahri baat kahi aapne...aaj man kuchh udaas ho raha tha...padhke achha laga!

मनोज कुमार ने कहा…

जोंग ,रोग ,सोग भोग कर
छूटे न अपनी आस का झाला
प्यास सभी को उसी घूँट की
जैसे जीवन हो मधुशाला
आख़िरी कुछ पंक्तियां बरक्स ध्यान खींचती हैं।

गीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना!

Udan Tashtari ने कहा…

अहा!! बेहतरीन रचना!

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी ग़ज़ल।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।

हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

"हम भी आये हैं मन रंगकर,और ओढ कर एक दुशाला"
ख़ूबसूरत रचना। " चुक जाये" तथा "और पड़ा है ज़ुबां" इस जगह मुझे कुछ कमी महसूस हो रही है ,क्रिपया देख लें।

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

शारदा जी नमस्कार! बहुत सुन्दर हैँ आपके भावपूर्ण विचारोँ का झाला। लाजबाव रचना। आभार! -: VISIT MY BLOG :- जब तन्हा होँ किसी सफर मेँ। ............ गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

shama ने कहा…

चुक जाये जब सब्र का प्याला
कैसे मैं पी लूँ फिर हाला
यहाँ नहीं है कोई मीरा
और नहीं है कृष्ण रखवाला
Ek naad hai,ek sangeet hai aapki rachname! Kya gazab kiya hai!

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

wah wah!

http://liberalflorence.blogspot.com/

शारदा अरोरा ने कहा…

चुक जाए यानि सब्र का प्याला जब ख़त्म हो जाए , पंजाबी में कहते हैं मुक जाए ; जुबान पे ताला पड़ा है ,ये भी आम बोलचाल की भाषा में कहा जाता है ...ये पंक्तिया इसी तरह आईं और इसी तरह लिख दी गईं । आपके सुझाव का स्वागत है ..मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा ...दिल ने इसे इसी तरह गुनगुनाया है ..फिर भी मैं सोचूंगी इसके लिये ।

आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद ।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

दुख की रात बहुत लम्बी है
और पड़ा है जुबाँ पे ताला
सच कहा है...
क्या करें...
जीवन इसी का नाम है.

प्यास सभी को उसी घूँट की
जैसे जीवन हो मधुशाला
बहुत उम्दा.

शारदा अरोरा ने कहा…

दानी जी के प्रश्न के समाधान के लिये हाजिर हूँ ...

मौके से चूक गए यानि मौका हाथ से छूट गया , चूक हो गयी यानि गलती हो गई , दिए में तेल चुक गया यानि तेल समाप्त हो गया , इसे जिन्दगी से भी जोड़ लिया जाता है , प्राण शक्ति ख़त्म तो जिन्दगी चुक गई ; इसी तरह मैंने इसे सब्र ..सहन शक्ति ख़त्म होजाने पर सब्र का प्याला चुक गया हो जैसे की तरह प्रयोग किया है ...अब बताइए कि क्या ये ठीक है या नहीं ? हिंदी जगत में लोग इस शब्द से परिचित हैं ।

मैं इसे अन्यथा नहीं ले रही , क्योंकि टिप्पणी कॉलम है ही इसीलिये , ताकि हमें हमारी कमियों का भी पता लग सके ,सुधार की गुंजाईश हो , एक प्रश्न बहुत सारे समाधान भी खोजता है और बहुत सारी जिज्ञासाओं को भी शांत करता है । क्योंकि ये प्रश्न कई लोगों का हो सकता है ।
आप ने बहुत अच्छी ग़ज़लें लिखी हैं , शायद चिट्ठा जगत से नहीं जुड़े हैं आप , इसी लिये ज्यादा पाठक गण आप तक नहीं पहुँचे ।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अहा... बेहतरीन..
प्यास सभी को उसी घूँट की.....
अध्यात्म में जाकर टिकना अच्छा लगा.

उम्मतें ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति !

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

bahut hee khoobsurat gazal..badhayi

भारतीय की कलम से.... ने कहा…

वन्दे मातरम !!
शानदार रचना, सुन्दर लेखन की निरंतरता के लिए अशेष शुभकामनायें प्रेषित हैं स्वीकार करें !!