सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

कितने साबुत और बचा क्या

चन्दा तेरा रूप पिऊँ क्या
दूर तू है तेरा साथ जिऊँ क्या

तू तन्हा दिन रात चला है
तेरी पीड़ है मुझसे जुदा क्या

मेरी आँख का आँसू चुप है
और भला खामोश सदा क्या

साथ साथ चलते हैं हम तुम
कितने साबुत और बचा क्या

तेरी मुसाफिरी बनी रहे
मेरा क्या है माँगूं क्या

मेरे गीतों में तू ही तू
ऐसा अपना नेह है क्या

दूर से दिखते मिलते हुए
धरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या

पी लूँ चाँदनी चुल्लू भर
सफ़र में थोड़ा आराम क्या

सहराँ भी ले लेता दम-ख़म
तू भी बता, तेरी मर्जी क्या

मेरी आवाज में सुन सकते हैं _
kitne sabut aur bacha kya.ogg1328K Download

21 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

वाह चंदा से उसकी मर्जी आज तक किसी ने नही पूछी होगी……………बेहद सुन्दर भावो का समन्वय्।

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

संजय भास्‍कर ने कहा…

पी लूँ चाँदनी चुल्लू भर
सफ़र में थोड़ा आराम क्या

सहराँ भी ले लेता दम-ख़म
तू भी बता, तेरी मर्जी क्या

गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

बेनामी ने कहा…

शारदा जी,

खुबसूरत रचना ...............कुछ शेर बहुत पसंद आये .........शुभकामनाये|

समय चक्र ने कहा…

मेरे गीतों में तू ही तू
ऐसा अपना नेह है क्या

बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना ... आभार

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

मेरी आँख का आँसू चुप है
और भला खामोश सदा क्या


सुन्दर पंक्तियाँ !

Apanatva ने कहा…

bahut sunder bhav........

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

तेरी मुसाफिरी बनी रहे
मेरा क्या है माँगूं क्या...
और...
पी लूँ चाँदनी चुल्लू भर
सफ़र में थोड़ा आराम क्या...
शानदार पंक्तियां हैं...बधाई.

kshama ने कहा…

तू तन्हा दिन रात चला है
तेरी पीड़ है मुझसे जुदा क्या

Wah! Ye to ham me se bahuton kee peeda hai! Kitni sundartase pooree rachana me dard bayan hua hai!

M VERMA ने कहा…

दूर से दिखते मिलते हुए
धरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
यही तो शाश्वत प्रश्न हैं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

छोटी बहर की सुन्दर रचना!
--
सहराँ भी ले लेता दम-ख़म
तू भी बता, तेरी मर्जी क्या
--
पढ़कर अच्छा लगा!

shikha varshney ने कहा…

दूर से दिखते मिलते हुए
धरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
जो दीखता है कहाँ होता है..
सुन्दर रचना.

seema gupta ने कहा…

दूर से दिखते मिलते हुए
धरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
बेहद सुन्दर और कोमल एहसास.....
regards

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत गज़ल

Dr Xitija Singh ने कहा…

तेरी मुसाफिरी बनी रहे
मेरा क्या है माँगूं क्या
wah ...

bahut sunder rachna ...

दीपक बाबा ने कहा…

भावपूर्ण कविता

बढिया

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

रचना दीक्षित ने कहा…

दूर से दिखते मिलते हुए
धरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
जो दीखता है कहाँ होता है..
भावपूर्ण सुन्दर पंक्तियाँ

शरद कोकास ने कहा…

भाव बहुत सुन्दर हैं ,लेकिन पंक्तियों मे लय कहीं कहीं टूटती दिखाई देती है ।

उम्मतें ने कहा…

ओह बेचारे चन्दा की व्यथा को आपनें खूब पहचाना ! आखिर को एक पीड़ित ही दूसरे की व्यथा को जानता है !
बाकी की टिप्पणी शरद कोकास जैसी !

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

ख़ामोशी के पीछे इक उदासी आँख से आंसू चुरा रही है .....बधाई ....!!