गुरुवार, 11 नवंबर 2010

तंग थी दिल की गली

कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही

करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही

साथ चलते चार दिन जो , पर दिलों में वहशत रही
लौट कर आए नहीं , जेहन दिन वही ढोती रही

कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही

25 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

शारदा जी,

बहुत खुबसूरत अशआर....ये शेर बहुत पसंद आये....शुभकामनाये|

करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही

सदा ने कहा…

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत गज़ल ..

vandana gupta ने कहा…

कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही

बहुत ही उम्दा गज़ल्……………भावों का सुन्दर चित्रण्।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

गजल के सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं!

kshama ने कहा…

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
Pooree rachana sundar hai,par ye panktiyan aprateem lageen!

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

बहतरीन गजल, सुन्दर भाव और लाजबाव प्रतुति।
सभी शेर उम्दा हैँ । बहुत- बहुत शुभकामनायेँ।
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आपका स्वागत करती तथा आपकी राह निहारती ये गजल ........अश्को को वो अपने छुपाती हैँ।

http://vishwaharibsr.blogspot.com

निर्मला कपिला ने कहा…

करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही
वाह सुन्दर गज़ल। बधाई।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बहुत खूबसूरत गज़ल ..

रचना दीक्षित ने कहा…

बहत खूबसूरत ग़ज़ल.हर एक शेर बेमिसाल.

उम्मतें ने कहा…

लौट कर आए नहीं , जेहन दिन वही ढोती रही ?

थोडा इसे समझाइये या फिर दुरुस्त कीजिये बाकी सब बढिया है !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही

बेहतरीन...शारदा जी वाह...

नीरज

शारदा अरोरा ने कहा…

साथ चलते चार दिन जो , सँगे-दिल वहशत रही

लौट कर आए नहीं , जेहन दिन वही ढोती रही

अली साहेब , जो चार दिन यानि थोड़ा लम्बा वक्त साथ दे सकते थे ,उस वक्त दिल के साथ जाने क्या वहशत सी थी , और वो दिन दुबारा पलट कर नहीं आए मगर जेहन यानि अंतर्मन उन्हीं दिनों को ढो रहा है ....इसी लिये तो खिजां है । उम्मीद है मैंने जो लिखा है साफ़ कर पाई हूँ ...शुक्रिया

Apanatva ने कहा…

bahut khoobsoorat gazal hai Sharda jee........

उस्ताद जी ने कहा…

5/10

खुबसूरत ग़ज़ल है
शेर बढ़िया हैं.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

शनिवार के चर्चा मंच पर इसको चर्चा में लगा दिया गया है!

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही


एक एक शेर दिल की कहानी कह रहा है...दिल से निकली बात दिल तक.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
सुन्दर है.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही

बहुत सुंदर ख्यालों का जाल......

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही


बहुत उम्दा रचना है...हर शेर बेहतरीन.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही ..

प्रेम में रुसवाई तो होती ही है ... पर फिर भी मज़ा आता है .. अच्छा लिखा है .

rajesh singh kshatri ने कहा…

बहुत खूबसूरत गज़ल ..

मेरे भाव ने कहा…

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही

बेहतरीन...

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

शारदा जी,
मन के असीम भावों से सराबोर है आपकी ग़ज़ल !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

अच्छी ग़ज़ल , बधाई।