मंगलवार, 23 नवंबर 2010

क्यूँ कोई सुखनवर न हुआ


दिल तो भरा है बहुत
बोला मगर कुछ भी न गया

आहटें सुनीं तो बहुत
मुड़ के देखा न गया

क़ैद में कौन हुआ
फासला जो मिटाया न गया

सूरज तो उगा
मेरे घर में दिन न हुआ

नब्ज तो देखी बहुत उजाले की
रोग का इल्म न हुआ

जिन्दगी दोस्त है तो
क्यूँ कोई सुखनवर न हुआ

वायदा खुद से कर के भूल गए
वो गया तो क्या क्या न हुआ

24 टिप्‍पणियां:

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

Bahut khoobsurat rachna!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सूरज तो उगा
मेरे घर में दिन न हुआ
... bahut sundar gazal... kuchh sher wakai prabhavshali..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बड़ी सुंदर पंक्तियाँ रची हैं आपने..... यह खास अच्छी लगी

आहटें सुनीं तो बहुत
मुड़ के देखा न गया

सूरज तो उगा
मेरे घर में दिन न हुआ

kshama ने कहा…

सूरज तो उगा
मेरे घर में दिन न हुआ
Aisa bhi hota hai!Bahut sundar rachana hai! Ehsaason ko jee ke likhe hue alfaaz!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है शारदा जी..
वायदा खुद से कर के भूल गए
वो गया तो क्या क्या न हुआ...
ये खास तौर पर पसंद आया.

रचना दीक्षित ने कहा…

बढ़िया शेरों से सजी ग़ज़ल

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

aapki nazme hamesha hi dil se nikle ehsaas hote hain jo dil ko mahsoos haote hain. sunder nazm.

उम्मतें ने कहा…

एक नाउम्मीदी और कुछ शिकायतें ! बेहतर लिखा आपने !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

नब्ज तो देखी बहुत उजाले की
रोग का इल्म न हुआ

वाह, बहुत सुन्दर !

Shah Nawaz ने कहा…

जिन्दगी दोस्त है तो
क्यूँ कोई सुखनवर न हुआ

बेहतरीन अभिव्यक्ति.....

vandana gupta ने कहा…

दिल का दर्द लफ़्ज़ो मे सिमट आया है।

बेनामी ने कहा…

शारदा जी,

पोस्ट बहुत अच्छी लगी.....पर मुझे लगता है ये न तो ग़ज़ल हो पाई और न ही नज़्म....हाँ इसे कविता कह सकते हैं |

मेरी तरफ से कुछ सुझाव हैं अगर ठीक लगे तो कर दीजियेगा.... ऐसा मुझे लगता है कृपया अन्यथा न लें......

दिल में तो हमारे है बहुत कुछ
बोला मगर कुछ भी न गया,

आहटें तो यूँ सुनीं बहुत
मुड़ के मगर देखा न गया,

क़ैद में किसके कौन हुआ है
फासला था, जो मिटाया न गया

सूरज तो उगा सारे जहाँ पर
मेरे घर में ही उजाला न हुआ

राह तो देखी बहुत उजाले की
रात का मगर इलाज न हुआ

जब जिन्दगी दोस्त है तो
क्यूँ कोई सुखनवर न हुआ

जब वादा खुद से कर के भूल गए
वो गया तो क्या-क्या न हुआ

Kunwar Kusumesh ने कहा…

दिल तो भरा है बहुत
बोला मगर कुछ भी न गया

वाह, अच्छी अभिव्यक्ति है

शारदा अरोरा ने कहा…

इमरान जी ,
आपने बहुत अच्छा लिखा है , बस आखिरी शेर को ज्यों का त्यों लिख दें , कुछ तो मेरा बना रहने दें , जानते हैं ये नज्में भी अपने बच्चों जैसी लगती हैं , ये भावों के मंथन से उपजी हैं और अपने भोले भाले कच्चे रूप में उपस्थित हैं , इसीलिए बड़ी प्यारी भी लगती हैं , इसीलिए बदलने का मन नहीं करता । कइयों को लगा होगा कि ऐसे शब्द कई बार हमारे ही मुहँ से निकलते हैं , मुझे लगता है कि हम पर असर भी ज्यादा रखते हैं । कविता और नज्म शायद एक ही बात है । अब ये गीत बने या कविता , ये आप लोग तय कर लें , मैंने तो ऊपर अपने ब्लॉग में लिख दिया है ...मेरे पास ग़ज़ल गढ़ने की तालीम नहीं , पर हाँ जब मैं इन्हें गाते हुए लिखती हूँ तो एक परफेक्ट ट्यून मेरे पास होती है ।

अब कोई मदद मुझे चाहिए होगी तो मैं आपसे ले लूंगी ...आपके सुझाव अच्छे लगे । धन्यवाद ।

शारदा अरोरा

निर्मला कपिला ने कहा…

नब्ज तो देखी बहुत उजाले की
रोग का इल्म न हुआ
बहुत खूब। अच्छी लगी कविता। बधाई।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

शारदा जी ,
आपके भाव जो मन की गहराई से उपजे हैं ,मन को छूते हैं !
इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सूरज तो उगा
मेरे घर में दिन न हुआ

नब्ज तो देखी बहुत उजाले की
रोग का इल्म न हुआ ...


मन के भाव को जस का तस लिखा दिया है आपने .. ये आपके लेखन की अदा है ... लाजवाब ....

कविता रावत ने कहा…

जिन्दगी दोस्त है तो
क्यूँ कोई सुखनवर न हुआ

वायदा खुद से कर के भूल गए
वो गया तो क्या क्या न हुआ
....manobhon ka bakhubi chitran kiya hai apne.. bahut achhi lagi rachna...

Dorothy ने कहा…

सूरज तो उगा
मेरे घर में दिन न हुआ

दिल को छूने वाली, बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

Sunil Kumar ने कहा…

सूरज तो उगा
मेरे घर में दिन न..
अच्छी लगी कविता। बधाई.

Urmi ने कहा…

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

Unknown ने कहा…

bahut shaandaar mam

Anupriya ने कहा…

hum to aapko mera hausla badhane ka shukriya kahne aaye the par aapki kavitao me aise kho gaye ki upar kai rachnao ki taareef karna bhi bhul gai...abhi taq jo bhi padha bada pyara laga...
mere blog par aa kar mera hausla badhane ka shukriya...