बुधवार, 2 नवंबर 2011

छाया का गिला है

अपने जैसा कोई
नहीं मिला है

सुख की कोई
आधार शिला है

हर कोई तन्हा
बहुत हिला है

किस काँधे पर
आराम मिला है

चिन्गारी है
आग सिला है

धूप है हर सू
छाया का गिला है

दिल दहला और
मौसम खिला है

सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है

18 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बहुत दिनों बाद आपकी रचना को बांचने का अवसर मिला .........वाह ! क्या बात है ..बहुत ही शानदार अनुभव रहा ..बधाई !

Sunil Kumar ने कहा…

क्या बात हैं बहुत सुंदर .....

Gyan Darpan ने कहा…

सुन्दर रचना

Gyan Darpan
Matrimonial Service

kshama ने कहा…

चिन्गारी है
आग सिला है

धूप है हर सू
छाया का गिला है
Kamaal kee panktiyan!

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत सुंदर रचना आपकी इस रचना को पढ़ कर एक गीत की चंद पंक्तियाँ याद आई
हर घड़ी बादल रही है रूप ज़िंदगी
छावन हैं कभी,कभी है धूप ज़िंदगी
हर पल यहाँ जी भर जियो
जो है यहाँ कल हो न हो .....
.समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बेहतरीन शब्द संयोजन ....

निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर। आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें।

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत खूब ।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-687:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या बात है, बढिया

संध्या शर्मा ने कहा…

सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है
बहुत सुंदर रचना...

shikha varshney ने कहा…

यही जीवन है..
कोई संतुष्ट नहीं
सुन्दर रचना.

चंदन ने कहा…

बेहतरीन..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा प्रस्तुति!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

बहुत सुन्दर...बधाई

प्रेम सरोवर ने कहा…

दिल दहला और
मौसम खिला है

सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है

बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ।

कविता रावत ने कहा…

bahut sundar post...