गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

ये कौन झुक -झुक के देखे

ये कौन झुक -झुक के देखे
मन के रंगों की कितनी चमक है
हम तो चलते हैं उसके सहारे
वो जो झुक-झुक के हमको निहारे

झलक तो वो अपनी ही पाता
मेरे संग-संग कदम वो बढ़ाता
थाप उसके ही क़दमों की है
मेरे मन में जो लेती हिलोरें

खुशबू की वो डाली सजाता
बैठ उस पर वो उसको हिलाता
फूल कलियाँ जो उसने बिखेरे
मेरे चेहरे ने वही रंग उकेरे

वो तो बैठा है मन में ही छुप के
रुक रुक के वो करता इशारे
घुँघरू उसके ही खनकाए हैं
माहौल में जो थिरकन उतारें

5 टिप्‍पणियां:

  1. वो तो बैठा है मन में ही छुप के


    रुक रुक के वो करता इशारे


    घुँघरू उसके ही खनकाए हैं


    माहौल में जो थिरकन उतारें

    बहुत सुंदर।

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  2. हम तो चलते हैं उसके सहारे
    वो जो झुक-झुक के हमको निहारे
    वो तो बैठा है मन में ही छुप के
    रुक रुक के वो करता इशारे

    आदरणीय शारदा जी ,
    आपकी कविता वाकई में दिल को छू गई , आगे भी आपके ब्लॉग पर ऐसे ही अच्छी रचनाये पढने की आशा है .

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  3. krapya shabd pushtikaran vilalp hata dijiye ,esse tippni dene me taklif hoti hai
    -swati

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  4. बहुत सुंदर शब्दों से सजी है आप की ये रचना...वाह...भाव भी कमाल के हैं...बधाई आपको.
    नीरज

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं