बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं


गुलाबी गुलाबी रँग अरमानों के
गुलाबी गुलाबी ख्वाब इन्सानों के

.फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं
गुलाबों के सँग इनकी आशिकी पली है
उलझा दामन तेरा तो क्यों गम है करता
चेहरे पे तेरे वो नूर बन बिखरता

२. बिना किसी धागे के पिरोयेगा कैसे
साँसों की माला के मोती हों जैसे
गुदड़ी में लाल जो तू छुपाये है फिरता
गुलाबी सी रँगत का ख्वाब बन उतरता

9 टिप्‍पणियां:

Mohinder56 ने कहा…

जी सही कहा.. कांटे तो गुलाब की रक्षा के लिये ही बनाये गये हैं.. किसी को चुभ जाये तो कांटे का क्या दोष :)

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) ने कहा…

बिना किसी धागे के पिरोयेगा कैसे
साँसों की माला के मोती हों जैसे
गुदड़ी में लाल जो तू छुपाये है फिरता
गुलाबी सी रँगत का ख्वाब बन उतरता
bahut sundar lagin ye panktiyan.

mehek ने कहा…

bahut achhi lagi rachana ,sahi kha kr last 4 lines lajawab

Vinay ने कहा…

आनन्द दायक रचना!

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुन्दर

शोभा ने कहा…

१.फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं

गुलाबों के सँग इनकी आशिकी पली है

उलझा दामन तेरा तो क्यों गम है करता

चेहरे पे तेरे वो नूर बन बिखरता
bahut khub likha hai.

रंजना ने कहा…

वाह ! वाह !

बहुत बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने....पढ़कर मन आनंदित हो गया. वाह !!!

daanish ने कहा…

बिना किसी धागे के पिरोयेगा कैसे
साँसों की माला के मोती हो जैसे

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ....
जीवन-दर्शन की परिभाषा को समझाती हुई कविता ....
बधाई . . . . . .
---मुफलिस---

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर, अब जो भी इन फ़ूलो से छेड छाड करेगा तो पहले उसे इन कांटॊ से भुगतना पडेगा.
धन्यवाद