मंगलवार, 29 सितंबर 2009

दिन है बड़ा मटमैला सा

अब न शाम-सहर
दिन है बड़ा मटमैला सा
उड़ गया चैन मेरे हाथों से
नीँद की ही तरह
अब न शाम- सहर

रातें जो न हों तारों भरी
हम जुगनू लेकर चल लेते
छल करता है सूरज जब-जब
छाया का टुकड़ा दे दे कर
दिन का है कहो , ये कौन पहर
अब न शाम- सहर

दिन कब होते सब एक से हैं
छाया भी यहाँ बेमानी सी लगे
अपना ही आप कहानी सी लगे
किस से मिल कर , ढाया ये कहर
अब न शाम- सहर

रोया था उस दिन आसमाँ भी
आया था जब वो साथ मेरे
पसीजा था तो मेरी ही तरह
बिखरा हुआ , आया था नजर
अब न शाम-सहर


11 टिप्‍पणियां:

शारदा अरोरा ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद , शास्त्री जी , ये पोस्ट ब्लॉग वाणी पर पब्लिश भी नहीं हुई और टिप्पणियों की सेटिंग में भी कुछ हेर फेर किया नहीं है , तो कुछ समझ नहीं आ रहा | ऐसे में आपका ध्यान इस तरफ गया , शुक्रगुजार हूँ |

Alpana Verma ने कहा…

रातें जो न हों तारों भरी
हम जुगनू लेकर चल लेते
छल करता है सूरज जब-जब
छाया का टुकड़ा दे दे कर
दिन का है कहो , ये कौन पहर
अब न शाम- सहर
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अहा!क्या खूबसूरत लिखा है!मन में उतर गयी..कितने कोमल भाव हैं! शारदा जी ..अद्भुत !

पी के शर्मा ने कहा…

एक अनूठी कविता
भावों से भरपूर
विचारों से औतप्रोत
आनंद आया पढ़कर

Mishra Pankaj ने कहा…

sundar rachanaa

Science Bloggers Association ने कहा…

Man ke bhaavon ko salike se sajaaya hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

ओम आर्य ने कहा…

एक धारा प्रावाह कविता जिसमे भावो के समन्दर है तो शब्दो के प्रवाह.....

M VERMA ने कहा…

अब न शाम-सहर
दिन है बड़ा मटमैला सा
बेहतरीन प्रवाहमयी रचना

प्रकाश गोविंद ने कहा…

किसी बेहद ख़ास ने मुझे यह कविता
पढने के लिए आपकी पोस्ट का लिंक दिया था !

बहुत ही सुन्दर
अंतर्मन को सहलाती हुयी लाजवाब रचना !

अब ज्यादा तारीफ़ न करके
सीधे फालोवर ही बन जाता हूँ !

आपका आभार
शुभकामनाएं

डॉ .अनुराग ने कहा…

अद्भुत नज़्म है ....इसे पढ़कर गुलज़ार साहब की एक नज़्म याद आ गयी .....

".दिन "-

आज का दिन जब मेरे घर में फौत हुआ
जिस्म की रंगत जगह जगह से फटी हुई थी
सुर्ख खराशे रेंग रही थी ,बांहों पर !
पलके झुलसी झुलसी सी ,ओर चेहरा धज्जी धज्जी था -
हाथ में थे कुछ चीथड़े से अखबारों के
लैब एक पे शिकस्ता थी आवाज थी बस !
देख इन बारह घंटो में क्या हालत की है दुनिया ने !

राज भाटिय़ा ने कहा…

शारदा जी बहुत ही सुंदर कविता, आप का धन्यवाद

pallavi trivedi ने कहा…

रातें जो न हों तारों भरी
हम जुगनू लेकर चल लेते
छल करता है सूरज जब-जब
छाया का टुकड़ा दे दे कर
दिन का है कहो , ये कौन पहर
बहुत बढ़िया...