सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

तिनका है बना पतवार कहीं


ले चल मुझको तू पार जरा
तिनका है बना पतवार कहीं

चलना है धारा के सँग-सँग
हूँ बीच नहीं मझधार कहीं


डगमगाया है तूफाँ ने जितना
उतना ही तू दमदार कहीं

चाहत ले आती है रँग इतने
इस रौनक का तू हक़दार कहीं

चिड़ियाँ चहचहाती हैं तो जरुर
सुबह किनारे की है तरफदार कहीं

जगते बुझते तेरे हौसलों में
चाहत का ही कारोबार कहीं

छोटा अणु ही तो इकाई है
परमाणु का सूत्रधार कहीं

5 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

जगते बुझते तेरे हौसलों में
चाहत का ही कारोबार कहीं

बहुत खूब, ये पंक्ति दिल को छु गयी।

ओम आर्य ने कहा…

बहुत ही सुन्दर है ......आपकी भावपुर्ण यह प्रस्तुति .......बधाई!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ले चल मुझको तू पार जरा
तिनका है बना पतवार कहीं

चलना है धारा के सँग-सँग
हूँ बीच नहीं मझधार कहीं

गीत की माला में आपने
शब्दों को मोतियों की भाँति पिरो दिया है।
बधाई!

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

छोटा अणु ही तो इकाई है
परमाणु का सूत्रधार कहीं

bahut khoob, umda , badhaai.

चाहत ने कहा…

ले चल मुझको तू पार जरा तिनका है बना पतवार वहां
बहुत बड़िया