मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

कैसे जिया जाता है



तुझे बता दूँ मैं , कि कैसे जिया जाता है
कैसे पलकों पे , सपनों को सिया जाता है

रुसवाई कैसी भी हो , जीवन से नहीं बढ़ कर है
लम्हे लम्हे को पी कर के , उत्सव को जिया जाता है

रूठे खुद से हो , सपनों की दुहाई देते हो
चाहत के रेशमी धागों से , जख्मों को सिया जाता है

जोश और जुनूनों को , किनारों का पहनावा दे कर
रँग और नूर की बरसातों से , खुशबू को पिया जाता है

तुझे बता दूँ मैं , कि कैसे जिया जाता है
कैसे पलकों पे , सपनों को सिया जाता है

15 टिप्‍पणियां:

Amit Chandra ने कहा…

बहुत खुब। शानदार रचना। आभार।

kshama ने कहा…

रूठे खुद से हो , सपनों की दुहाई देते हो
चाहत के रेशमी धागों से , जख्मों को सिया जाता है
Wah! Harek pankti dohrayee jaa saktee hai!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

रुसवाई कैसी भी हो , जीवन से नहीं बढ़ कर है
लम्हे लम्हे को पी कर के , उत्सव को जिया जाता है

बहुत सुंदर बात कही....

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

रुसवाई कैसी भी हो , जीवन से नहीं बढ़ कर है
लम्हे लम्हे को पी कर के , उत्सव को जिया जाता है
बहुत सुन्दर संदेश दिया है शारदा जी, वाह.

Apanatva ने कहा…

रूठे खुद से हो , सपनों की दुहाई देते हो
चाहत के रेशमी धागों से , जख्मों को सिया जाता है
wah kya baat hai..

behatreen rachana.

devendra gautam ने कहा…

आ तुझे बता दूँ मैं , कि कैसे जिया जाता है
कैसे पलकों पे , सपनों को सिया जाता है
----वाह...बहुत खूब!

बेनामी ने कहा…

शारदा जी......एक सकरात्मक उर्जा देती अहि आपकी ये पोस्ट ......बहुत सुन्दर.....पर मुझे लगा की जहाँ आपने छोटी 'इ' की मात्र का इस्तेमाल किया है वहां पर बड़ी 'ई' का इस्तेमाल होना चाहिए था.......

जैसे - जिया - जीया

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें

नीरज

Sunil Kumar ने कहा…

रूठे खुद से हो , सपनों की दुहाई देते हो
चाहत के रेशमी धागों से , जख्मों को सिया जाता है
खुबसूरत रचना, बधाई

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

शारदा जी बहुत सुंदर रचना। हार्दिक बधाई।

---------
देखिए ब्‍लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्‍वासी आज भी रत्‍नों की अंगूठी पहनते हैं।

kavita verma ने कहा…

रूठे खुद से हो , सपनों की दुहाई देते हो
चाहत के रेशमी धागों से , जख्मों को सिया जाता है bahut khoobsurat..

शारदा अरोरा ने कहा…

सब का बहुत बहुत धन्यवाद , इमरान जी , यहाँ संदेह की गुंजाइश नहीं है , जीना सीना तो होता है मगर जीया सीया बोलने पर बड़ी ई का उच्चारण बहुत लटका कर हो जाता है ...हिंदी में जिया जाता है या सिया जाता है ही कहा जाएगा । अपने बच्चों को जब हिंदी सिखाई थी तो हिंदी का ज्ञान रिवाइंड हो गया था । हाँ उर्दू की गल्तियाँ जरुर हो सकती हैं , इसीलिए भारी शब्दों का इस्तेमाल मैं नहीं करती , क्योंकि जिस भाषा पर अपनी पकड़ कमजोर हो ,उसमें आत्मविश्वास के साथ नहीं लिखा जा सकता । धन्यवाद ...

Unknown ने कहा…

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आकर्षण गिरि ने कहा…

रुसवाई कैसी भी हो , जीवन से नहीं बढ़ कर है
लम्हे लम्हे को पी कर के , उत्सव को जिया जाता है

लाख रुसवाियों के बाद भी जीते जाना ही जिंदगी है... जिंदगी से हार नहीं मानना चाहिे... बहुत बढ़िया जीवन दर्शन है.... बधाई.....

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आ तुझे बता दूँ मैं , कि कैसे जिया जाता है
कैसे पलकों पे , सपनों को सिया जाता है
----वाह...बहुत खूब!