फूलों में उलझे तो पड़ते नहीं हैं पाँव ज़मीं पर
काँटों में उलझे तो , ज़मीं बचती ही नहीं है क़दमों तले
ज़िन्दादिली तो हिन्दी में भी छलकती है
ये वो भाषा है जो ज़रुरी है सीखने के लिये
बहुत चाहा कि लिखूँ खुशियों पर , हैरानियों पर
बेबसी , वीरानियों की सौगात हैं मेरी नज्में
है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने
ज़िन्दगी जलाती है तो राख के ढेर में बचाती इतना
कलम कागज़ थमा कर , दुनिया भर को सुनाती अफ़साने अपने
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
1 दिन पहले
है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जवाब देंहटाएंजो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने
यही है जीवन की रीत शारदा जी………सुन्दर अभिव्यक्ति।
फूलों में उलझे तो पड़ते नहीं हैं पाँव ज़मीं पर
जवाब देंहटाएंकाँटों में उलझे तो , ज़मीं बचती ही नहीं है क़दमों तले
Bahut khoob kaha!
ek baar ishq kar lo
जवाब देंहटाएंsaare jahaan ke gam dekh lo
khoob soorat
है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंनीरज
बेहद खुबसूरत अफसाना है . प्रीत की टीस सी..
जवाब देंहटाएंYou have some interesting thoughts! Perhaps we should consider about trying this myself.
जवाब देंहटाएंFrom everything is canvas
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर...
बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
जवाब देंहटाएंहै प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जवाब देंहटाएंजो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने
अच्छा प्रयास और भावनात्मकता।
कने शब्द सिवनी जबलपुर की बुंदेली प्रभावित ग्राम्य क्षेत्रों का शब्द है। आपने इसे कैसे पाया ?
बढ़िया बधाई!
खूबसूरत अभिव्यक्ति. सादर.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है आपने ....समय मिले कभी तो आयेगा मृ पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति!बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंहै प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जवाब देंहटाएंजो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने
ज़िन्दगी जलाती है तो राख के ढेर में बचाती इतना
कलम कागज़ थमा कर , दुनिया भर को सुनाती अफ़साने अपने
बहुत बढ़िया
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंUmdaaaa....... Behtareen...
जवाब देंहटाएंहै प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जवाब देंहटाएंजो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर...."
खूबसूरत अभिव्यक्ति .
हर मजहब हमें इंसानियत सिखाना चाहता है यह तो सच है लेकिन इन्सान इसे तोड़-मदोड़कर पेश करता है. जैसे गीता को कुछ लोग इस तरह पेश करते हैं जैसे वह युद्ध का समर्थन करती हो और कुरान आतंकवाद का.
जवाब देंहटाएंमैं तो उस सुद्ध ज्ञान की बात कर रहा हूँ जो इन्म्र छिपा है...बिना किसी इंसानी लग लपेट के.
ब्लॉग पर आने के लिए बहूत शुक्रिया....आते रहिये यही गुजारिश.