शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

सौगात

फूलों में उलझे तो पड़ते नहीं हैं पाँव ज़मीं पर
काँटों में उलझे तो , ज़मीं बचती ही नहीं है क़दमों तले

ज़िन्दादिली तो हिन्दी में भी छलकती है
ये वो भाषा है जो ज़रुरी है सीखने के लिये

बहुत चाहा कि लिखूँ खुशियों पर , हैरानियों पर
बेबसी , वीरानियों की सौगात हैं मेरी नज्में

है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने

ज़िन्दगी जलाती है तो राख के ढेर में बचाती इतना
कलम कागज़ थमा कर , दुनिया भर को सुनाती अफ़साने अपने

18 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने
यही है जीवन की रीत शारदा जी………सुन्दर अभिव्यक्ति।

kshama ने कहा…

फूलों में उलझे तो पड़ते नहीं हैं पाँव ज़मीं पर
काँटों में उलझे तो , ज़मीं बचती ही नहीं है क़दमों तले
Bahut khoob kaha!

Nirantar ने कहा…

ek baar ishq kar lo
saare jahaan ke gam dekh lo

khoob soorat
है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत खूब

नीरज

Amrita Tanmay ने कहा…

बेहद खुबसूरत अफसाना है . प्रीत की टीस सी..

Always Unlucky ने कहा…

You have some interesting thoughts! Perhaps we should consider about trying this myself.

From everything is canvas

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत खूब
सादर...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने


अच्छा प्रयास और भावनात्मकता।


कने शब्द सिवनी जबलपुर की बुंदेली प्रभावित ग्राम्य क्षेत्रों का शब्द है। आपने इसे कैसे पाया ?


बढ़िया बधाई!

Amit Chandra ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति. सादर.

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत खूब लिखा है आपने ....समय मिले कभी तो आयेगा मृ पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति!बहुत बढ़िया!

Vandana Ramasingh ने कहा…

है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने

ज़िन्दगी जलाती है तो राख के ढेर में बचाती इतना
कलम कागज़ थमा कर , दुनिया भर को सुनाती अफ़साने अपने

बहुत बढ़िया

अनुपमा पाठक ने कहा…

बहुत खूब!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!!

आकर्षण गिरि ने कहा…

Umdaaaa....... Behtareen...

Rajput ने कहा…

है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर...."
खूबसूरत अभिव्यक्ति .

शरद सिन्हा ने कहा…

हर मजहब हमें इंसानियत सिखाना चाहता है यह तो सच है लेकिन इन्सान इसे तोड़-मदोड़कर पेश करता है. जैसे गीता को कुछ लोग इस तरह पेश करते हैं जैसे वह युद्ध का समर्थन करती हो और कुरान आतंकवाद का.
मैं तो उस सुद्ध ज्ञान की बात कर रहा हूँ जो इन्म्र छिपा है...बिना किसी इंसानी लग लपेट के.

ब्लॉग पर आने के लिए बहूत शुक्रिया....आते रहिये यही गुजारिश.