यूँ तो हालात ने हमसे दिल्लगी की है
जीने का शउर सिखाना था , कुछ इस अन्दाज़ में गुफ्तगू की है
कोई एक तो होता हमारा गम -गुसार
हाय नायाब सी शै की जुस्तज़ू की है
अपने जख्मों की परवाह किसे
उसकी आँख में आँसू , फिर कोई रफू की है
दुनिया नहीं होती सिर्फ बुरी ही बुरी
उसी दुनिया से किसी और ही दुनिया की आरज़ू की है
हमको मालूम नहीं राग क्या है रागिनी क्या है
काले सफ़ेद सुर ज़िन्दगी के , ताल देने को दू-ब-दू की है
यूँ तो हालात ने हमसे दिल्लगी की है
जीने का शउर सिखाना था , कुछ इस अन्दाज़ में गुफ्तगू की है
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
1 दिन पहले
दुनिया नहीं होती सिर्फ बुरी ही बुरी
जवाब देंहटाएंउसी दुनिया से किसी और ही दुनिया की आरज़ू की है
Waise to pooree rachana bahut sundar hai par ye panktiyan khaas achhee lageen!
बढिया है
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है! आपके ब्लॉग पर अधिक से अधिक पाठक पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आप्क स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति..... बेहतरीन पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंWaah Sundar prastuti
जवाब देंहटाएंLife is Just a Life
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यूँ तो हालात ने हमसे दिल्लगी की है
जवाब देंहटाएंजीने का शउर सिखाना था , कुछ इस अन्दाज़ में गुफ्तगू की है
वाह सुन्दर प्रस्तुति
har sher bahut kamaal aur khaas...
जवाब देंहटाएंयूँ तो हालात ने हमसे दिल्लगी की है
जीने का शउर सिखाना था , कुछ इस अन्दाज़ में गुफ्तगू की है
daad sweekaaren.
बहुत अच्छी बढ़िया रचना,....
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सपने में कभी न सोचा था,जन नेता ऐसा होता है
चुन कर भेजो संसद में, कुर्सी में बैठ कर सोता है,
जनता की बदहाली का, इनको कोई ज्ञान नहीं
ये चलते फिरते मुर्दे है, इन्हें राष्ट्र का मान नहीं,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
आपका अंदाजे बयां लाजबाब है शारदा जी.
जवाब देंहटाएंहर शेर उम्दा है.
नववर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा जी.