कोई तारा नहीं , जुगनू भी नहीं
हसरतों की आँख मिचोली भी नहीं
अँधेरी रात में क्या क्या खोया
बूझने को पहेली भी नहीं
हाथ को हाथ न सूझे जो
शबे-ग़म में कोई सहेली भी नहीं
तुम आ जाते तो अच्छा था
ख़्वाबों की कोई रँगोली भी नहीं
ज़िन्दगी मिट्टी का ढेर नहीं महज़
फूँकना जान कोई ठिठोली भी नहीं
सो लेते हम भी घड़ी दो घड़ी
दिल की लगी है ,चैन की बोली भी नहीं




4 टिप्पणियां:
वाह एक से बढ़कर एक पंक्तियाँ अति सुन्दर लाजवाब
अति सुन्दर.
कोई तारा नहीं , जुगनू भी नहीं
हसरतों की आँख मिचोली भी नहीं ........
सुंदर अभिव्यक्ति.........
तन्हाइया दर्द देती ही हैं .. सुन्दर प्रस्तुती
मेरी नई पोस्ट पर आमंत्रित करता हूँ http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html
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