गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

ये जनम तो तन्हाई के नाम

ज़िन्दगी कुछ यूँ भी गुजरी 
हाथ और प्याले की दूरी मीलों लगी 

उसको चलना ही नहीं था साथ 
बात कहने में इक उम्र लगी 

चाहने भर से क्या होता 
ना-मन्जूरी की ही मुहर लगी 

ये जनम तो तन्हाई के नाम 
समझने में बहुत देर लगी 

हाथ में कुछ भी नहीं है 
माथे पे शिकन ही शिकन लगी 

गर ताजमहल नहीं है किस्मत में मेरी 
खाकसारी भी मुझे न्यारी ही लगी 

सजा ही है ईनाम गर तो 
दाँव पर उम्र सारी ही लगी 


9 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति,,,

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Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन सुन्दर रचना,आभार.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी रचना
बहुत सुंदर

अशोक सलूजा ने कहा…

हमने तो दिया था उनको दिल अपना
पर उनको ये भी हमारी दिल्लगी लगी ....
शुभकामनायें!

Sushil Bakliwal ने कहा…

बहुत सुन्दर.

सावधान ! ये अन्दर की बात है.

Asha Joglekar ने कहा…

Jindagi tanhaee ke nam................
bahut bhawpoorn.

vandana gupta ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (6-4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

शानदार

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह.....
बहुत अच्छी रचना.....

सादर
अनु