अपने अपने सफ़र की बात है
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं
समझे थे जिसे हम आबो-हवा
सहरा में धूप से क्या निज़ात है
आँधी-तूफाँ बने सँगी-साथी
टकराये भी अगर तो बरसात है
जरुरी है हवा ,काँपती है लौ
ऐ अँधेरे तुझे फिर भी मात है
लेती है करवट कभी जो तन्हाई
पास शहनाई दूर वो बारात है
चलना पड़ता है रुख हवाओं के भी
आगे चलना ही ज़िन्दगी से मुलाकात है
बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के
हौसले का जगमगाना भी सौगात है
कतरा-कतरा जली ,वज़ूद तक है ढली
शम्मा के सामने बस ढलती हुई रात है
गीतों-नज़्मों के काँधे रखे सर हुए
एक दुनिया में अपनी भी औकात है
अपने अपने सफ़र की बात है
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं
समझे थे जिसे हम आबो-हवा
सहरा में धूप से क्या निज़ात है
आँधी-तूफाँ बने सँगी-साथी
टकराये भी अगर तो बरसात है
जरुरी है हवा ,काँपती है लौ
ऐ अँधेरे तुझे फिर भी मात है
लेती है करवट कभी जो तन्हाई
पास शहनाई दूर वो बारात है
चलना पड़ता है रुख हवाओं के भी
आगे चलना ही ज़िन्दगी से मुलाकात है
बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के
हौसले का जगमगाना भी सौगात है
कतरा-कतरा जली ,वज़ूद तक है ढली
शम्मा के सामने बस ढलती हुई रात है
गीतों-नज़्मों के काँधे रखे सर हुए
एक दुनिया में अपनी भी औकात है
अपने अपने सफ़र की बात है
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं
waaaaaaaaaaaaaaaaah bhot khub
जवाब देंहटाएंWAH WAH ...
जवाब देंहटाएंबढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के
जवाब देंहटाएंहौसले का जगमगाना भी सौगात है
Bahut Sunder
बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के
जवाब देंहटाएंहौसले का जगमगाना भी सौगात है
बहुत उम्दा ख्याल.
अच्छी लगी ग़ज़ल.
बहुत बढ़िया,उम्दा गजल !!! ,
जवाब देंहटाएंRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
वाह...
जवाब देंहटाएंबढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के
हौसले का जगमगाना भी सौगात है
कतरा-कतरा जली ,वज़ूद तक है ढली
शम्मा के सामने बस ढलती हुई रात है
बेहतरीन ग़ज़ल..
सादर
अनु
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंचलना पड़ता है रुख हवाओं के भी
जवाब देंहटाएंआगे चलना ही ज़िन्दगी से मुलाकात है----
सकारात्मक सोच की अभिव्यक्ति
सहज पर गहन अनुभूति
सुंदर रचना
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा गजल !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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जरुरी है हवा ,काँपती है लौ
जवाब देंहटाएंऐ अँधेरे तुझे फिर भी मात है ..
ठीक कहा है आपने ... चाहे दिया काँपता रहे ... अंधेरे को तो वो ही मात देता है ...
उम्दा गज़ल है ...