शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

अपने अपने सफ़र की बात है

अपने अपने सफ़र की बात है 
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं 

समझे थे जिसे हम आबो-हवा 
सहरा में धूप से क्या निज़ात है 

आँधी-तूफाँ बने सँगी-साथी 
टकराये भी अगर तो बरसात है 

जरुरी है हवा ,काँपती है लौ
ऐ अँधेरे तुझे फिर भी मात है 

लेती है करवट कभी जो तन्हाई  
पास शहनाई दूर वो बारात है 

चलना पड़ता है रुख हवाओं के भी 
आगे चलना ही ज़िन्दगी से मुलाकात है 

बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के 
हौसले का जगमगाना भी सौगात है 

कतरा-कतरा जली ,वज़ूद तक है ढली 
शम्मा के सामने बस ढलती हुई रात है 

गीतों-नज़्मों के काँधे रखे सर हुए 
एक दुनिया में अपनी भी औकात है 

अपने अपने सफ़र की बात है 
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं 

10 टिप्‍पणियां:

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

waaaaaaaaaaaaaaaaah bhot khub

Sunil Kumar ने कहा…

WAH WAH ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के
हौसले का जगमगाना भी सौगात है

Bahut Sunder

Alpana Verma ने कहा…

बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के
हौसले का जगमगाना भी सौगात है
बहुत उम्दा ख्याल.
अच्छी लगी ग़ज़ल.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया,उम्दा गजल !!! ,

Recent post: तुम्हारा चेहरा ,

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...
बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के
हौसले का जगमगाना भी सौगात है

कतरा-कतरा जली ,वज़ूद तक है ढली
शम्मा के सामने बस ढलती हुई रात है


बेहतरीन ग़ज़ल..
सादर
अनु

अरुन अनन्त ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

Jyoti khare ने कहा…

चलना पड़ता है रुख हवाओं के भी
आगे चलना ही ज़िन्दगी से मुलाकात है----
सकारात्मक सोच की अभिव्यक्ति
सहज पर गहन अनुभूति
सुंदर रचना
बधाई

आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


बहुत उम्दा गजल !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postजीवन संध्या
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दिगम्बर नासवा ने कहा…

जरुरी है हवा ,काँपती है लौ
ऐ अँधेरे तुझे फिर भी मात है ..

ठीक कहा है आपने ... चाहे दिया काँपता रहे ... अंधेरे को तो वो ही मात देता है ...
उम्दा गज़ल है ...