शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

ज़िन्दगी निभाने में

 बूँद-बूँद रिस गये हम , उम्र के प्याले से 

रीते रहे हम , ज़िन्दगी के निवाले से 


तुरपनें , पैबंद, बखिए , सीवनें 

सारी क़वायदें ज़िन्दगी निभाने में 


आँखों के सामने पतझड़ जो उतरें 

सीने के मौसम कैसे फिर निखरें 


हमने तो अक्सर तिनके की छाँव में 

खुद को सम्भाला , धूप के गाँव में 


अपनी-अपनी धरती है , अपना-अपना अम्बर है 

एक ख़ुदा बाहर तो एक पैग़म्बर अन्दर है 

2 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह !!!! बहुत खूब 👌👌👌👌

कविता रावत ने कहा…

अपनी-अपनी धरती है , अपना-अपना अम्बर है
एक ख़ुदा बाहर तो एक पैग़म्बर अन्दर है
... बहुत सुन्दर