सोमवार, 25 मई 2009

उम्र के हाथों छला गया है

आज का दिन भी नया नहीं है
बचपन याद से गया नहीं है
अल्हड़ है ये अब भी बेशक
उम्र के हाथों छला गया है

मैंने चाहा गीत मैं गा लूँ
सूरज से इक किरण चुरा लूँ
माथे में इक सोच बसा लूँ
अंगने में सूरज जो खड़ा है

प्यार का उबटन , वफ़ा की खुशबू
क्यों न मैं मल-मल के नहा लूँ
मेरा चाँद-खिलौना भी तू
मेरे माथे ताज जड़ा है


बुधवार, 20 मई 2009

भरम न हो तो

वो साथ नहीं आयेगा , साथ चलने का भरम होता है
भरम न हो तो ये दिल तन्हाँ होता है

दिल टूटे या सलामत रहे , भरम को साबुत रख कर
चलने की वजह बनता है

चारों ओर जो तू ही तू है , मेरी हस्ती क्या है
और बता कैसे गुमाँ बनता है

सुबहों को शामों में ढलते देख रही हूँ , दिल जला कर ही सही
मेरे हिस्से में कुछ तो उजाला होगा

मंगलवार, 5 मई 2009

क़दमों में ख़म माँगा


तकता था , सिसकता था
दुनिया ने कहाँ बाँधा ?

जुबाँ को शब्द नहीं थे
शब्दों ने है कुछ बाँचा

अरमानों और हकीकत को
कहाँ कहाँ जाँचा

तेरी उँगली पकड़ने को
तेरा ही साथ माँगा

सर रख के जो ये रोता
कब मिला कोई काँधा

ऊँची-नीची डगर पर
माली ने है कुछ राँधा

सपनों में मेरे आकर
क़दमों में है कुछ बाँधा

रुसवाइयों से डर कर
वीरानों ने समाँ बांधा

अच्छा है कोई नहीं जानता
उपहारों में है क्या बाँधा

उपहारों की गिनती कम है क्या
हौसलों में दम माँगा

अपने ही चलने की खातिर
क़दमों में ख़म माँगा