टिमटिमाती लौ की सँभाल ही सही
चढ़ा जो आसमाँ में है
अपना ख्याल ही सही
मन लगाने के लिए
किसी राग का धमाल ही सही
हो आँख में आँसू तो
हाथ में रुमाल ही सही
न हुई ईद तो क्या
रोज़े की मिसाल ही सही
मिटा डालेगी नमी अपनी
बार बार सवाल ही सही
भारी भरकम लफ्जों की पढ़ाई भी नहीं , गीत गज़लों की गढ़ाई की तालीम भी नहीं , है उम्र की चाँदी और जज्बात के समन्दर की डुबकी, किस्मत लिखने वाले की मेहरबानी , जिन्दगी का सुरूर , चन्द लफ्जों की जुबानी...
वैलेंटाइन डे में पवित्रता का रँग भरिये ...
मैंने पूजा की थाली से , प्रसाद सा पाया है तुम्हें
सर माथे से लगा कर , किसी दुआ सा अपनाया है तुम्हें
गुजर रही थी जिन्दगी यूँ ही
तुम्हारे आने से , सुरूर सा आया है हमें
चेहरा तुम्हारा यूँ भी अक्सर
हथेलियों में चाँद सा नजर आया है हमें
तन्हाइयों में भी साथी तुम हो
ज़ुदा चलना तुम से , कब रास आया है हमें
फूलों की बगिया से उठ कर
कौन आया है फिजाँ में , गुरूर आया है हमें
हाथों में उम्मीदों के दिए रक्खे
इश्क लौ सा जगमगाता हुआ , नजर आया है हमें
मैंने पूजा की थाली से , प्रसाद सा पाया है तुम्हें
सर माथे से लगा कर , किसी दुआ सा अपनाया है तुम्हें
अँधेरे से जब मैं गुजरूँ
तुम श्याम देख लेना
ढूँढे से भी मैं पाऊँ
जब कोई किरण कहीं ना
तुम लाज मेरी रखना
तपतीं हैं मेरी राहें
साया न सिर पे पाऊँ
जब घाम से मैं गुजरूँ
तुम लाज मेरी रखना
विरहन सी मैं भटकती
टकराती फिर रही हूँ
जब श्याम वन से गुजरूँ
तुम लाज मेरी रखना
तुझको खबर रही है
नजरों से है क्यों ओझल
इस दौर से मैं गुजरूँ
विष्वास मेरा रखना
अँधेरे से जब मैं गुजरूँ
तुम श्याम देख लेना
ढूँढे से भी मैं पाऊँ
जब कोई किरण कहीं ना
तुम लाज मेरी रखना