हसरतों की देहरी पर तुम
पाँव रखना सोच कर
है कहाँ आसान इतना
आना अपना लौट कर
है बहुत मगरूर इंसाँ
दिल लगाना सोच कर
लग गया जो दिल तो फिर
निभाना सीना ठोक कर
बेवफा निकलें जो सपनें
ये भी रखना सोच कर
होगा कहाँ अपना ठिकाना
खुद को पूछो रोक कर
मन्जर भी हैं मंजिल ही
देखो तो ये सोच कर
सफ़र के सजदे में तुम
सिर झुकाना , माथा ठोक कर
पाँव रखना सोच कर
है कहाँ आसान इतना
आना अपना लौट कर
है बहुत मगरूर इंसाँ
दिल लगाना सोच कर
लग गया जो दिल तो फिर
निभाना सीना ठोक कर
बेवफा निकलें जो सपनें
ये भी रखना सोच कर
होगा कहाँ अपना ठिकाना
खुद को पूछो रोक कर
मन्जर भी हैं मंजिल ही
देखो तो ये सोच कर
सफ़र के सजदे में तुम
सिर झुकाना , माथा ठोक कर