शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

दौड़े बहुत हो

आँतक-वाद की रोकथाम कैसे हो .....

बदले के बदले चलते रहेंगे 
खुदा बन के खुद को छलते रहेंगे 

थोक में बिछी लाशें , क्या सुख है पाया 
जो भी गया है ,लौट के न आया 
जख्मीं हैं सीने तो , मरहम लगाओ 
गूँजती सदाओं को , न तुम भुलाओ 
कब तक यूँ ख़्वाबों को मसलते रहेंगे 

कराहता है कोई , नजर न चुराओ 
सीने में उसको , न यूँ तुम दबाओ 
बहुत दिन हुए हैं , तुम्हें मुस्कराये 
दौड़े बहुत हो , नहीं पता पाये 
सहरा में कब तक भटकते रहेंगे 

बदले के बदले चलते रहेंगे 
खुदा बन के खुद को छलते रहेंगे