रविवार, 26 सितंबर 2010

इतना चुप हो जाऊँ

इतना चुप हो जाऊँ
कि बुत हो जाऊँ

तराशे गए हैं अक्स भी
मैं भी सो जाऊँ

सर्द आहों से पलट
जमाने की हवा हो जाऊँ

रूह को छू ले जो
रकीबों सी दुआ हो जाऊँ

कब बदलता है कोई
मैं ही काफिर हो जाऊँ

दर्द किसको नहीं होता
जुदा जिस्मो-जाँ हो जाऊँ